Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[ पद भजन गत आदि
साधणी सुध पादरी देस मरतनी नाम । बैलेरयावरण स्वामी जी करावो जीव जी ॥५॥
मधमभाग
देव छी तणार नंदरग यांदवार उभी श्री नेम जिरोसपार। जन्मणा साधा न देख नर कारवालागा इम परदीतार।। साया साम्हो देवकी देसी नर उभा रहा छ नजर नीहाल रे। कसतो""टाछ कात्र धातागीर छुटी छ हद तशीए धार रे ॥२॥
तनमान बाग सोहाबडो उसस्यो र फल में फली छे जेहना कायरे । बसाया माहा तो भाव रही रे देख तो लोचन तीरपत न थायर ।।३॥
रीवकी तो साधान छ विणा करी र पासा पाइछ माहीलो माहारे। सोच फिकर देवकोरे ज्योर मोहतगी ए बातरे ॥४॥ सासो तो भाज्यो श्री नेमजोरे एतो छह थारा वालरे। आस्या माही भासु पढेरे जारण मी त्यारे टुटा मालरे ॥५॥
मरजी तांद छोडो सगला नगर मझारो, मुहमांगा दीजे घणारे मणि मारक भंडार ।
मलि पालक व पोषाधवी गनराला हादराखी । सूणकरण ए ढाल ज भाषा तीज चोथ इसही ए साली ए॥६॥
इति श्री देवकी की ढाल स० ||
कमजी।
दसक्त चुनीलाल सापड़ा चैतराम ठाकरका बेटा छोटाका छ बांच प? ज्यांस जया जोग बायो : मिती
वैशाख बुदी १४ सं० १९८५ ।
देवकी की दाल-रतनचन्दकृत और है। प्रति गल गई है । कई अंश नष्ट होगये हैं। पढ़ने में नहीं माता है। अन्तिम- -
गुण गाया जी मारवाड मझार कर जोडि रतनचंद भरणे ॥१०॥ ४२४६. दीपायनदाल-गुणसागरसूरि । पत्र सं० १ | मा० १.१४४३ ह । भाषा-हिन्दी राजरानी । विषय-स्तवन । २० काल x 1 ले० काल x I पूर्ण । पै० म० २१६४ । क भण्डार।
४२४४. नेमिनाथ के नवमङ्गल-विनोदीलाल | पत्र सं० १ । प्रा. १६६x६ इछ । भापा-हिन्दी; विषय स्तुति । १० काल सं० १७७४ । ले० काल सं० १८५२ मंगसिर हुदी २ । वे० सं० ५४ । म भण्डार |
विदोष-चौमू में प्रतिलिपि हुई थी । जन्मपत्री की तरह गोल सिमटा हुमा है।