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श्री काय स्थिति प्रकरण.
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राजीनो स्पर्श करे छे २, पश्चिमनी अभ्यंतर राजी उत्तरनी वहारनी राजीनो स्पर्श करे छे ३, तथा उत्तरनी अभ्यंतर राजी पूर्वनी बहारनी राजीनो स्पर्श करे छे.. ४.
हवे ते कृष्णराजीओना कोण (खूणा ) ना विभाग कहे छे:पुत्र्वावरा छलंसा तंमा पुर्ण दाहिणुतरा बज्झा । अभंतर चउरंसा सन्वा वि अ कन्हाई ॥ ५३ ॥
अर्थ - पूर्व तथा पश्चिमनी बहारनी वे कृष्णराजीओ छ हांस वाळी - षटकोण छे, अने उत्तर दक्षिणनी बहारनी वे कृष्णराजी ओ त्रिकोण छे, अने अभ्यंतरनी चारे कृष्णराजोओ चतुरस्र-चार खुणावाळी पटले चोखंडी के.
॥ इति कृष्णराजीद्वारममम् ॥ ८ ॥
हवे नवमं वलयद्वार कहे छे:पुरुवरिगारस तेरेव कुंडले रुअगि तेर द्वारेवा । मंडलिआचलतिनिऊ मणुत्तर कुंडलो रुअगो ॥ ५४ ॥
अर्थ - काळोद समुद्रनी बहार वलयना आकारे रहेलो सोळ लाख योजनना विस्तारवाळो पुष्करवर नामनो द्वीप छे, तेना अर्धी बहारना दळमां पहेलो पर्वत के १, तथा जंबूद्वीपथी अग्यारमो कोइना मते तेरमो कुंडलद्वीप छे, तेना अर्थ भागमां बीजो पर्वत के २, तथा " जंबूधायइपुक्खर " ए प्रमाणे संग्रहगीमां देखाडेला क्रमवडे तेरमो अथवा वीजाना मते अढारमो रुचक द्वीप छे, तेमां त्रीजो पर्वत छे. ए प्रमाणे मंडलाचल वलयाकार त्रण पर्वत पुष्करवर, कुंडल अने रुचक नामना द्वीपोमां अर्धा अर्धा भागमा माकार (किल्ला) ना आकारे रहेला छे. ते पर्वतोनां नाम मानुषोवर, कुंडल. अने रुचक एवां छे. ५४.