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मूढ तथा भाषांतर. हवे गाथाना पूर्वार्धवडे ते.पर्वतोनी उंचाइ कहे छे:-- सत्तरसय इगवीसा' बायालसहस'चुलसिसहसुच्चा । चउसय तीसा कोसं' सहसं सहसं च ऊगाढा ॥५५॥ ___अर्थ--मानुषोत्तर पर्वत सतरसो ने एकवीश योजन उंची छ १, कुंडल पर्वत बेतालीश हजार योजन उंचो छ २ अने रुचक पर्वत चोराशी हजार योजन उंचो छ ३, हवे गाथाना उत्तरार्ध वडे ते पर्वतोनो भूमिमां अवगाह ( उंडाइ) बतावे छे. पहेलो मानुषोत्तर पर्वत उंचाइने चोथे भागे एटले चारसा ने त्रीस योजन तथा एक क्रोश (गाउ ) भूमिमां अवगाहीने रह्यो छे. बीजाबे कुंडल तथा रुचक पर्वतो हजार हजार योजन भूमिमां अवगाहीने रह्या छे. ५५०
हवे ते पर्वतोना नीचे, बच्चे तथा उपरना विष्कभर्नु मान कहे :भुवि दससय बावीसा मज्झे सत्त य सया उ तेवीसा। सिहरे च तारि सया चउवीसा मणुअकुंडलगा ॥५६ ॥ ___अर्थ--पहेला बे पर्वतनो विष्कंभ कहे छे-समान भूतळनी अपेक्षाए ( तळेटीए) एक हजार ने बावीश योजननो विस्तार छे, मध्य भागमा सातसोने त्रेवीश योजननो विस्तार छे, अने शिखर उपर चारसो ने चोवीश योजननो विस्तार छे. आ प्रमाणे मानुपोत्तर अने कुंडल पर्वतनो विष्कंभ-विस्तार जाणवो. ५६.
- हवे रुचक पवनो त्रणे स्थाननो विस्तार ए बन्ने पर्वतो करतां भिन्न छे, ते कहे छे:-- दससहसा बावीसा भुवि मज्झे सगसहस्स तेवीसा। सिहरे चउरा सहसा चउवीसा अगसलंमि ॥ ५७ ॥