Book Title: Pushpa Prakaran Mala
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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, मूल तथा भाtar ( २८५) सकसाओ एयाउ पंचयं वेयार मोह वज्जाउ।
एव पंचनियंठो, दुनियनामं च गुत्तंच ॥८॥दा.२३॥ ४१ वेयणीयाउअ-वेदनीय पुलाओ-पुलाक पंचय-पांच
अने आयुष्य आउ बज्जाओ-आ. | एवं-एमज बन्जा-वर्जीने युष्य वर्जीने | नियंठो-निग्रंथ पगडीओ-प्रकृतिओ सकसाउ-कसाय दुनि-बे. उीरह-उदीरे • कुशील
नाम-नाम कर्म छउ-छ
एयाओ-आ . गुतं-गोत्र कर्म ____ अर्थः-पृलाक घेदनीय अने आयुष्य वर्जीने छ.कर्म प्रकृति उदीरे बकुस अने प्रतिसेवा कुशील सात, आठ अने छ आयुष्य विना साः कषाय कुशील वेदनीय, आयुष्य अने मोहनीय वर्जीने पांच ए प्रमाणे निग्रंयने पण पांच तया नाम अने गोत्र ए बे कर्मनी उदीरणा होय. ७९-८०
विवेचन:-हवे २३ मूं उदीरणा द्वार कहे छ:-पुलाक ने वेदनीय अने आयुष्य वर्जीने छ कर्म प्रकृतिनी उदीरणा होय. बकुश अने प्रतिसेवा कुशील ने सातकर्मनी, आठ कर्मनी अने छ कर्मनी उदीरणा होय सर्वे कर्मनो उदय होय त्यारे आठ, आयुष्य बिना सात अने वेदनीय अने आयुष्य विना छ कषाय कुशीलने घेदनीय, आयुष्य अने मोहनीय ए त्रण कर्म विना पांच कर्मनी उदीरणा, निग्रंन्यने एज पांच कर्मनी उदीरणा तथा बारमा गुणठाणानी अं: तमा नाम अने गोत्र ए बे कर्मनीज उदीरणा होय. ७९-८० हाओ एवं दुन्नि उदीरणाए वज्जिओवसोहेइ दा०२३॥
चहऊण पुलायत्तं, होइ कसाई अविरओ वा ॥८॥ पहामो स्नातक । बज्जिओ-वर्जीत । होह-शेय. . एवं-एमज | उपसोहेई-शोभे कसायी-कषाय
| चाऊण-स्थजीने कुशोल - उदीरणाए-उदोरणा पुलायसं-पुलाकपणु 'अविरओ-अविरती

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