Book Title: Pushpa Prakaran Mala
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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( २९६ )
श्री पंच निग्रंथी प्रकरण.
एवं चैव य फुसणा (दा. ३३) चउरो भावे खओवस मियंमि । हाओ खाइयभावे उवसमि खइयंमि वि नियंठो ॥ ९९ ॥
॥ दा० ३४ ॥
एवं ए प्रमाणे
चेष-निश्चे फुसणा-स्पर्शना
चउरो-चारे
भावे - भावमां खओवस मियमि-क्ष. ोपम
खाइयमावे- क्षायिक.
भाव
उसमि-उपशमभाष सार्यमि- क्षायिकभाव
वि
-पण
अर्थः- एज प्रमाणे स्पर्शना जाणवी. चार क्षयोपशमभावे. स्नातक क्षायिकभावे - अने निग्रन्थ उपशम अथवा क्षायिकभावमां. ९९ विवेचन :- हवे ३३ मुं स्पर्शनाद्वार कहे छे:- जे प्रमाणे अवगाहना कही ते प्रमाणे स्पर्शना जाणवी विशेष एटलं के स्पर्शना aise अधिक छे. जेटलाने पडखे स्पर्शे तेली अधिक स्पर्शना.
हवे ३४ मुं भावद्वार कहे छे :- पुल(क, धकुश, प्रनिसेवा कुशील तथा कषाय कुशील ए चार क्षयोपशम भावे चारित्रमां होय. स्नातक क्षायिक भावे चरित्रमां होय. तथा निग्रन्थ अगिआरमे गुणठाणे उपशमभावे चरित्रमां होय अने बारमे गुणठाणे क्षायिकभाबे होय. ९९
पडिवज्जति पुलाया इक्काइ जाव सयपुहुत्तंपि । पडिवन्ना जड़ हुंती सहस्स पुहु-तंत एगाई ॥ १०० ॥ सयपुहुत्तं शतपृथक्त्व | हुंती - होय
पडिवज्अंति- पडिव. जता प्रतिपध्यमान इक्काइ- एक थी मांडी
जाव- सुधी
जइ-जा
पडिवन्ना-प्रतिपन्न सहस्त-पुहुतं सहस्रपृथक्त्व अर्थ :- प्रतिप्रद्यमान पुलाक एकधी मांडी शत पृथकत्व होय. अने प्रतिपन्न एकथी मांडी सहस्र पृथक्त्व होय. १००
विवेचनः - हवे ३५ मुं परिमाणद्वार कहे छे: प्रतिपद्यमान
Andenge

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