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श्री सिद्धदण्डिकास्तव..
( १७५ )
त्यार पछी चौद लाख सर्वार्थसिद्धे अने एक मोक्षे. वळी चौद लाख सर्वोर्थे अने एक मोक्षे एम चौद लाखने अंतरे एक एक सिद्ध कहेतां एक एकनी संख्या असंख्याती थाय त्यां सुधी कहेतुं. त्यार पछी चौद चौद लाखने अंतरे बे बे सिद्ध वे बेनी संख्या असं. ख्यातो थाय त्यां सुधी कहेवा. त्यार पछी चौद चौद लाखने अंतरे ण णनी चार चारनी एम यावत् पचास पचासनी संख्या असंख्याती असंख्याती थाय त्यां सुधी कहेवुं ४.
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२ प्रतिलोम सिद्धदंडिकानी स्थापना:
सर्वार्थसिद्धे ग० १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १०५० असंख्येयवार मोक्ष गएल १४ १४ १४ १४ १४ १४ १४ १४ १४ १४ १४ असंख्येयवार
तो दो लक्खा मुक्खे, दुलक्ख सङ्घट्ठि मुक्खि लक्खतिगं । इय इगलक्खुत्तरिआ, जा लक्ख असंख दोसु समा ॥५॥ तो- त्यार पछी
लख्ख असंख-असं
दो-बे
ख्यात लाख
टख्खा-लाख
मुक्खे-मोक्षे
डुलख्ख - बे लाख तिगं-त्रण
इय-ए प्रमाणे
दोसु बनेमां
लख्खुत्तरिआ - लाख लाख अधिक
समा-सरखा
अर्थ--त्यार पछी बेलाख मोक्षे अने बे लाख सर्वार्थ त्यार पछी त्रण लाख मोक्षे एम एक एक लाख वधारतां असंख्याता लाख सुधी बनेमां सरखा कहेवा. ५
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विवेचन - असंख्यातमीवार पचास मोक्षे गया पछी चौद लाख सर्वार्थसिध्ये. ए प्रमाणे आगली गायामां कला पछी बे लाख मोक्षे त्यार पछी बे लाख सर्वार्थे पछी त्रण लाख मोक्षे पछी त्रण लाख सर्वार्थे पछी चार लाख मोक्षे पछी चार लाख सर्वार्थ एम
एक एक लाखनी संख्या वधारतां वनेमां ( मोक्षमां अने सर्वार्थसिद्धयां) सरखा सरखा कहेनां असंख्याता लाख थाय त्यां सुधी कहेवुं. ५
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