Book Title: Pushpa Prakaran Mala
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 286
________________ - मूल तथा भाषांतर. ( २८१ ) विवेचनः - हवे ओगणीसम्म लेगा द्वार कहे छे:- पुलाक, बकुश तया प्रतिसेवा कुशीलने तेजो पद्म अने शुकल ए त्रण शुभ लेश्या होय. कषाय कुशीलने छए लेश्या होय. निग्रंथने छठी शुकल लेश्याज होय. अने स्नातकने तेरमे गुणठाणे परम शुकल होय अने चौदमे गुणठाणे लेश्यातीत होय एटले एके लेश्या न होय. अलेशी होय. ७१. व वठियपरिणामया कसायंता । व ंत हांगा नो हीयमाणभावा, निग्गंध सिणायया हुंत्ति ॥ ७१ ॥ षटुंत-वधता हायमाण होन थता अवठिय- अवस्थित परिणामया - परिणामो कषायंना- कषाय कु· शील सुधी नोहीयमाण भावा हीयमान परिणाम विन ना निग्गंध निग्रंथ - सम सिगायया - स्नातक हुति होय छे. अर्थः- कषाय कुशील सुधी बघता, घटता तथा अवस्थित परिणामी होय. निग्रंथ तथा स्नातक हीयमान परिणाम विनाना होय. ७२. विवेचनः - हवे वीस परिणामद्वार कहे छे:- कषाय कुशील 'सुधीना एटले पुलाक, बकुश, मनिसेवा कुशील तथा कषाय कुशल ए चारे निर्ग्रन्थो बघते परिणामे पण होय, घटते परिणामे पण होय अने अवस्थित परिणामे पण होय. निग्रन्थ तथा स्नातक हीयमान परिणामे न होय एटले बघता परिणामे होय अथवा अवस्थित परिनामे होय. कारण के निर्ग्रन्थ पडतो ते कषाय कुशीलज होय. ७२. समयमवठिय भावो जहन्न इयरो उ सत्तसमथाउ । समयंत मुहुत्ताई सेसाओ आइमच उन्हं ॥ ७३ ॥ समयं - एक समयनो इयरो - ईतर (उत्कृष्ट अविट्ठियभावो-अब- सत्त सात स्थित भाष समयाउ - समयनो समयंत मुहुत्ताई अंतर्मुहूर्त. सेस ओ बाकीना मावो नाइमचउण्ं-प्रथम ना चारने जन- जघन्यथी

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