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श्री पंच निग्रंथी प्रकरणे.
अर्थः- मथमना चारने जघन्यथी एक समयनो अवस्थितभाव अने इतर सात समयनो बाकीना समय अने अंतर्मुहूर्त ७३.
विवेचनः - पुलाक, वकुश, प्रतिसेवा कुशील तथा कषायकुशीळ ए चारने अवस्थित भाव जघन्यथी एक समय अने उत्कृष्टथी सावन होय. बाकीना वे भाव वर्धमान तथा हीयमान जघ न्यथी एक समय अनं उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्तना होय. ७३
निग्गं धंतमुहुत्तं दुहावि भावो पवद्रुमाणो उ । समयं जहण्णवठिय अंतमुहुत्तं चउवकोसो ॥ ७४ ॥ पढपाणी प्रवर्ध
निग्रंथ - निग्रन्थमे अंतमुहु - अन्तर्मुहुर्त हा ने प्रकारे
मान
अड्डि-अवस्थित अन मुहुत्त - अन्तर्मु हुत उक्कोसो- उत्कृष्टथी
समयं एक समय
आयो-माव
जहण्ण-जघन्य
अर्थः-- निग्रन्थने प्रवर्धमान बन्ने प्रकारे अंतर्मुहूर्तना अवस्थित जघन्यथी एक समय अने उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त ७४.
विषेचनः -- निग्रन्थने वर्धमान भाव जघन्यथी अन्तमुहूर्त अने उत्कृष्टथी अन्तर्मुहूर्त तथा अवस्थित भाव जघन्यथी एक समयनो अने उत्कृष्टथी अन्तमुहुर्तनो ७४.
व्हायरस व माणो अंतमुहुतं दुहावि परिणामो ।
एवं अवठिओ विहु ऊक्कोसो पुव्वकोडुणो ॥ ७५ ॥ दा२० ॥
परिणामो परिणामः | उक्कोसो- उत्कृष्ट एवं - ए प्रकारे
अवभिषि अवस्थि पुरुषकोडुणो-पूर्व को
त पण
दिना
अर्थः- स्नातको वर्धमान परिणाम जघन्यथी अने उत्कृष्टयो एम बने प्रकारे अंतर्मुहूर्तनो एम अवस्थित परिणाम पण उत्कृष्टथी पूर्वकोडीनो ॥७५॥
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व्हायरस - स्नातक
मानो वर्धमान
अंतमुत्तं - अंतर्मुहु दुहाधिने प्रकारे.
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