Book Title: Pushpa Prakaran Mala
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 267
________________ (२१२) श्री पंच निग्रंथी प्रकरण. गी जाणवा. निर्ग्रन्थ उपशांत रागी तथा क्षीणरागी पण होय अने स्नातक क्षीणरागीज होय. ३८. पढमो य थेरकप्पो, कप्पाईया नियंठग सिणाया। सकसाओ तिविहोचिय, सेसाओ जिणथेर कप्पंमि॥३९॥ परमो-प्रथम (पुलाक | नियंठग-नियंग्य | चिय-निश्चे। निप्रैथ) सिणाया-स्नातक सेसा-बाकीना थेरकप्पो-स्थविर कल्प सकसाओ-सकषायी | जिण-जिनकल्प कप्पाइया-कल्पातीत तिषिहो-त्रिविध थेरकप्पंमि-स्थविरकल्प अर्थः-प्रथमभेदे स्थविरकल्प, निग्रन्थ तथा स्नातक कल्पातीत, सकषायी त्रिविध अने बाकीना जिन तथा स्थविर कल्पी.३९ विवेचनः-हवे चोयूं कल्पद्वार कहे छे:-पुलाक निर्गन्य स्थविर कल्पीज होय. निर्ग्रन्थ तथा स्नातक कल्पातीत होय. कारण के तैहने स्थविर कल्पादिक सामाचारी नथी. कषाय कुशील त्रणे प्रकारे होय. एटले स्थविर कल्पी होय तथा जिनकल्पी होय तथा कल्पातीत एटले कल्प रहित पण होय कारणके छद्मस्थ सकषाय तीर्थकर कल्पातीत होय. बाकी रहेला बकुश तथा प्रतिसेवा कुशील ते स्थविर कल्पे तेमज जिनकल्पे होय. ३९. आइम संजमजुयले, तिन्निय पढमा कसाय वं चउसु । निग्गंथ सिणाया पुण,अहरूखाए संजमे हुंति ॥४०॥दा०५ भाहम-प्रथम पढमा-प्रथमना पुण-वळी संजम-संयम चउसु-चारमा अहक्खाए यथाख्यात जुयले-युगल निग्गंथ-निग्रन्थ संजमे-संयममा तिनि-प्रण सिणाया-स्नातक हुंति-छे. ___ अर्थ:-प्रथमना संजम युगलमां प्रथमना त्रण निन्य होय. चारमा कषाय कुशील. यथारूयात चारित्रमा निर्ग्रन्थ ते स्नातक होय. ४९.

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