Book Title: Pushpa Prakaran Mala
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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( ४ )
बउला- वकुश
सेवि - प्रति सेवाकुशील
पुलाया-पुलाक आईम- प्रथमना नाणेसु - ज्ञानमां
श्री
निग्रंथी प्रकरणे
दो-मां तिसु-त्रणमां वावि-अथवा पण
पदमस्त - पहेलाने
जहणणेण जघन्यथी होउ - जाणवुं
सुर्य-श्रुत
जाब- सुधी
णहाउ- स्नातक केबलनाणे - केवल
अर्थ - बकुस, प्रतिसेवा कुशील अने पुलाक प्रथमना बे अथवा ण ज्ञानमां होय. स्नातक केवलज्ञानमां. वळी बाकीना (निगन्थो) चारमां भजनाए होय. ४२.
ज्ञानमां
सेसा - बाकीना पुण-वळी
चउसु चारमां
भयणाए - भजनाए
विवेचनः - हवे सावसुं ज्ञानद्वार कहे छे:- वकुश निर्गन्य, प्रतिसेवा कुशील अने पुलाक निर्गन्थ ए त्रण निर्गन्यने प्रथमनां वे एटले मति अने श्रुत ज्ञान होय अथवा प्रथमना त्रण एटले मति, श्रत अने अवधि होय. केवलज्ञाने स्नातक होय. कारण के छेला वे गुणठाणे केवळज्ञानज होय. बाकीना निर्गन्थोने चारनी भजना होय. १ कपाय कुशील अने बीजा निर्ग्रन्थ ए वे निर्ग्रन्थो ने मति अने श्रुत ए बे होय अथवा मति श्रुत अने अवधि ए त्रण अथवा मति श्रुत अने मनः पर्यव एत्रण अथवा मति श्रुत अवधि अने मनः पर्यव ए चार ज्ञान होय. ४२
पढमस्स जहणणं होउ सुर्यं जाव नवम पुव्वस्स । आयार तइयवत्थं उक्कोसेणं तु नवपुत्र्वा ॥ ४३ ॥
नवमपुव्वस्त - नवमा
वथु-वस्तु
पूर्वना
उक्कोसेबं- उत्कृष्टथी
आयार-आचार ताय - त्रीजा
तु- बळी
नवपुषा - नवपूर्वनुं
अर्थः- पहेलाने जघन्यथी श्रुत नवमा पूर्वना श्रीजा वस्तु आसार सुधी जाणं. वळी उत्कृष्टथी नव पूर्वनुं संपूर्ण होय. ४३

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