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(१८४) मूल तथा भाषांतर. निगोद बे प्रकारे छे १ सूक्ष्मनिगोद, २ बादर निगोद. तेमां सूक्ष्मनिगोद चौद राजलोकमां भरेली छे पण बादर निगोद नियत. स्थान वर्ती (अमुक अमुक भागमांन ) होय छे. अनंतजीवोनुं एक साधारण शरीर तेने निगोद कहे छे. एटले एक एक निगोदमां अनंगा अनंता जीव छे. एक एक जीवना असंख्यात प्रदेशो छे. ते असंख्यातु लोकाकाशना प्रदेश सरखं जाणवू.
आ जीवनी उत्कृष्ट अवगाहना चौद राजप्रमाण छे. कारणके ज्यारे जीव केवली समुद्घात करे छे त्यारे चोथे समये तेनो एक एक प्रदेश लोकाकाशना एक एक प्रदेश उपर आवी जाय छे तेथो ते जीव चौद राजलोक व्यापी थाय छे. जीवनी जघन्य अवगाहना अंगुलना असंख्यातमा भाग प्रमाण छे. जीव ज्यारे घणो संकुचित थाय छे त्यारे ते अंगुलना असंख्यात भाग प्रमाण अवगाहनावानो होय छे आवी संकुचित अवगाहना निगोदमां होवाथी एक निगोदनी अवगाहना पण अंगुलना असंख्यातमा भाग प्रमाग छे. निगोदमां अनंता जीवोनुं एक साधारण शरीर होवायी सघळा जोवो सरखी अवगाहनावाळा हं.य छे. तेथी करीने एक आकाश प्रदेशमा अनंता जीवोना असंख्यात असंख्यात प्रदेशो रहे छे.
हवे प्रथम गाथामां पूछेल प्रश्ननो उत्तर कहे छे. थोवा जहन्नयपए, जियप्पएसा जिया असंखगुणा। उकोसपयपएसा, तओ विसेसाहिया भणिया ॥२॥ योगाजिया-जयो | तओ-तेनाया महनपर - घापदे | असंख गुणा संख्या- विसेसा या विशेषा. जियप एसा-जीव तगुणा
धिक प्रशो
उक्कोसपय-उत्कृष्टपदे भणिया-ममा छ ! परसा-प्रदेशो