Book Title: Pushpa Prakaran Mala
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 237
________________ (१३२ भी मा प्रकरण. दत्व अने मनुष्यगति ए बेज औदयिक भाव होय कारणके त्यां लेश्यानो अभाव छ. २०-२१. हवे औपशमिक भावना भेद गुणठाणे कहे छे:तुरिआओ उवसंतं, उवसमसम्मं भवे पवरं ॥ २२ ॥ नवमे दसमे संते, उवसमचरणं भवे नराणं च । खाइगभेए भणिमो इत्तो गुणठाणजीवेसु ॥ २३ ॥ तुरिमाओ चोथायी । पवरं प्रवर श्रेष्ठ । नराण-मनुष्योने उवसंत-उपशांतसुधी संते-उपशांतमोहे। उवसमसम्भ--उप. उपसमचरण-उपशं. | खाइगभेए-क्षायिकभेद शम समकित त चारित्र भणिमो-कहुं छु भवे-होय | भवे-होय । इत्तो-हवे ___ अर्थ-चोथाथी अगिआरमा गुणठाणा सुधी उत्तम उपशम समकित होय. २२. नवमे, दशमे अने अगिारमे गुणठाणे मनुष्यने उपशम चारित्र पण होय छे. हवे गुणस्थान जीवने विषे क्षा. चिकना भेद कहुं हुं. २२-२३. विवेचन-प्रथमना त्रण गुणठाणे औपशमिक भाव न होय. चोथायी आठमा सुधीना पांच गुणठाणे औपशमिक समकितरुप एक औपशमिक भाव होय अने नवमा, दशमा अने अगिारमा ए त्रण गुणठाणे उपशम समकीत अने उपशम चारित्र ए बे औपशमिक भाव होय. छेल्ला त्रण गुणठाणे उपशम भाव नथी. २२-२३ ___ हवे गुणठाणे क्षायिक भावना उत्तर भेद कहे :खाइगसंमत्तं पुण, तुरियाइगुणठगे सुए भणियं । खीणे खाइगसम्म, खाइगचरणं च जिणकहिअं ॥२४॥ दाणाइलद्धिपणगं, केवलजुअलं समत्त तह चरणं । खाइगभेआ एए सजोगि चरमे य गुणठाणे ॥ २५ ॥

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