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मूल तथा भाषांतर.
हवे चौद गुणस्थान नामर्नु बारमुं द्वार कहे है:अह चउदससु गुमेहुँ कालपमाणं भणामि कविहं पि। न मरइ मरइवि जेसुं सह पर भq जेहिं अप्पबह ॥७२।। __ 'अर्थ-आ गुणस्थान नामना द्वारमा पण चार प्रतिद्वारो (अंतर्गत द्वारो) छे. ते आ प्रमाणे-चौदे गुणस्थानकोमा जघन्य अने उत्कृष्ट एम वन्ने प्रकारनी स्थितिना काळy प्रमाग १, तथा जे जे गुणस्थानोमा रहेलो जीव मरे के न मरे ? तेनुं स्वरुप २, तथा जीव जे जे गुणस्थानो सहित परभवमा जाय अथवा न जाय ते ३, तथा गुणस्थानोर्नु अल्प बहुत्व ४, आ प्रमागे गुणस्थानोनां चार प्रतिद्वारोने हुं कहोश-कहुं छु. ७२.
तेमां पहेला प्रतिद्वारनी व्याख्या करवा इच्छता आचार्य मिथ्यात्वनो स्थितिना काळनो भेद वतावे छे. मिच्छं अणाऽनिहणं अभच्चे भव्धे वि सिवामानुग्गे । सेवगहा अगाइसंतं साईसंतं पितं एवं ॥ ७ ॥ ___अर्थ-अनादि अनंत १, अनादि सांत २, सादि अनंत ३, अने सादि सांस ४, ए चार भेदोनां अभव्य जोग्ने अनादि अनंत भांगे मिथ्याशय छ, तथा भव्य गं पण जे मोक्ष पायाने अयोग्य हाय, तेने पण अनादि अनत भांगे मिथ्यात होय छे. आथी करीने भव्य अने अभय बन्नेने अनादि अनंत मिथ्यात्व सिद थयु. ए प्रथम भांगो जाणतो. तथा मोक्ष पामवाने योग्य एका भव्य जीवने अनादि सांत एटले आदिरहित अन आ सहित मिथ्याब होय छे. जेमके कोहक जी। मरुदेवो मानानी जेम समकित पामीने (वम्या शिवाय ) तरस ज मोशे जाय छे, अबीजो भांगो जाणवो २. तथा कोइक जीवने सादि सांस मिथ्यास होय हेमके कोई जीव श्री महावीर स्वामी विगेरेमो जेम समकित