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(८६) मूल तथा भाषांतर. अनुक्रमे थोडा, अनंतगुणा, अनंतगुणा, विशेषाधिक, अने छेल्ला बे अनंतगुणा ए प्रमाणे छे.
विशेषार्थ--प्रत्येक जीवा अनंतानंत पुद्गलोथो बंधायेला प्राये होय छे, अने पद्गलो जीव साथे बद्ध अने असंवद्ध एम बन्ने प्रकारना होय छे, तेथी जीव पुद्गलो करतां स्तोक छे. जीवथी अनंतगुणा पुद्गलो छे. कारण के जे तेजमादिक शरीर जीवे ग्रहण करेला छे, तेना पुद्गलो परिमाणने आश्रीने जीव करतां अनंन गुणा . तथा तैसज शरीग्थी प्रदेश परिमाणमां अनंतगुणा कार्मग प्रदेशो छे. ए प्रमाणे ते तैजस अने कार्मण जीव प्रतिबद्ध जीव करतां अनंतगुणा छे, अने जीव विमुक्त जीवे ग्रहण करीने मूकी दीपेला ते करतां पण अनंतगुणा छे. बाकीना शरीर संबंधी विचार अहीं करवामां आव्यो नथी. कारणके ते ग्रहण कर ने मृकला पण पोतपोताना स्थानमां नैनस कार्मणने अनंतभे भागे छे. आ प्रमाणे तैजस शरीरना पुद्गलो पण जीव करतां अनंतगुणा छे, तो पछो कार्यणादि पुद्गल गशि सहित करीये, त्यारे अनत. गुणा याय, तेमां शुं कहे ? तथा औदारिक पदर प्रकारना प्रयो- . गथी परिणत एवा पुद्गलो स्तोक (थे डा ) छे. तेनाथी मिश्र परिणत पुद्गलो अनंतगुणा छे प्रयोगकृत आकारने जेणे सर्वया तज्यो नथी, अने जे स्वभावे (विश्रसा परिणामे (परिणामांतरने पामेला छे, एवा मृतकलेवरा दिक विश्रसा छे. अथवा औदारिका. दिक वर्गणारुप विश्रसा परिणाम परिणमेला छतां जे जीव प्रयोग वडे एकेन्द्रियादि शरीर विगेरे परिणामांतरने पामेल होय छे, ते मित्र परिणत पुद्गलो कहेवाय हे. अहीं शिष्य प्रश्न करे छे के-प्रयोग परिणाम पण एज प्रकारको होय छे, तो ए बेमां विशेप | छे ? .." तेनो उसर-हे शिष्य ! सारं कहे, सत्य के. पण प्रयोग