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(१४८) सिरपंचाशिका.
तिर्यचिणी, देवता मनुष्य, मनुष्यिणी अने देवीमांथी आतीने उपदेशवडे सिद्धि पामनारने वर्षसाधिक अंतर जाग. अने स्वयंबोधीने संख्याता हजार वर्षनु अंतर. ॥ २२ ॥
पृथ्वीकाय, अपकाय, वनस्पतिकाय, सौधर्म इशान देवलोप अने प्रथमनी बे नरकथी आवेलाने पोतानी मेळे वा उपदेयथी सिद्धि पामनारने हजार वर्षनं अंतर जाणवू.
४ वेदद्वारे-वीवेदी अने नपुंसकवेदीने तेमज पूर्वे कहेला वेदना नव भांगामांथी पुरुषवेदयी आवीने पुरुषवेदी थाय ते प्रथम भंग सिवायना बाकीना आठ भांगे संख्याता हजार वर्षनु अंतर जाणवू. ॥ २३ ॥ नरवेअपढमभंगे, वरिस४ पत्ते जिणजिणी सेसा । संखसमसहस पुवासहसपिहणंतहिअवरिसं ५॥ २४ ॥ पढमभंगे प्रथम मांगे
| जिण-जिनेश्वर | पुवा-पूर्व परि जिणी तीर्थकरी | पिहु पृथक्त्व पत्तेअ-प्रत्येक सेसा-शेष सिवायना | अहिअ अधिक ___ अर्थ-पुरुषवेदी अने प्रथम भांगे वर्षतुं अंतर, प्रत्येकबुद्ध, तीर्थकर, वीर्थकरी अने बाकीनाने अनुक्रमे संख्याता हजार वर्ष, सहस्रपृथत्व पूर्व, अनंतकाल अने वर्षाधिक काल जाणवो. विवेचन
४ दद्वारे-पुरुषवेदीने वर्षतुं अंतर तेमज पुरुषवेदमांथी आवी पुरुषवेदीमां उत्पन्न थनार प्रथम भांगाने विषे पण एक वर्षतुं अंतर. __५ तीर्थद्वारे-प्रत्येकबुध्धने संख्याता हजार वर्षनु अंतर, तीर्थकरने हजार पृथकत्व पूर्वनु अंतर तीर्थकरीने अनंतकालनें अंतर अने बाकी रहेलाने समधिक एक वर्ष उत्कृष्ट अंतर जाणवू. २४