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श्री कायस्थिति प्रकरण. (११) प्रदेशने अवगाहीने अनंता परमाणु मुधीना स्कंधो रहेला छे, तेमनी असत् कल्पनाए करीने बावीशनी संख्या स्थापीए, तेमाथी चार चार लेतां बाकी वे ज रहे छे. माटे ते दावर जुम्मा कहेवाय छे. ३. तथा पर्याप्त वादर वनस्पति १, वादर पर्याप्त २, अपर्याप्त वादर वनस्पति ३, बादर अपर्याप्त ४, बादर ५, सूक्ष्म अपर्याप्त वनस्पति ६, सूक्ष्म अपर्याप्त ७, सूक्ष्म पर्याप्त वनस्पति ८, सूक्ष्म पर्याप्त ९, मूक्ष्म १०, भव्य ११, निगोदना जीवो १२, वनस्पतिना जीवो १३. एकेन्द्रिय १४, तिर्यंच १५, मिथ्यादृष्टि १६, अविरति १७, सकपायी १८, छद्मस्थ १९, सयोगी २०, संसारी जीवो २१, तथा सर्व जीवो २२, ए वावीश जीव राशीओ आठ मध्यम अनंते छे तो पण असत् कल्पनार करीने तेनी पचीशनी संख्या स्थापीए, तेमांथी चार चार लेतां वाकी एक रहे छे, ते कलियुग जुम्मा कहेवाय छ, आ जुम्माोर्नु कार्य-प्रयोजन ( उपयोग) मूत्रथी जाणो ले. अहीं तो तेनुं स्वरुप मात्रज देखाडयुं छे. ___ इवे पृथ्वी आदिक परिमाण ( नवमो विचार) कहे छ:धजवस परिव बिति च समुन
पणथ ख ज न भवर विनसुस पमुति । जगनभप ध अ इगजिय
हिअनि सिनिव जीस पुअभ अपर वणका ॥५०॥ ____अर्थ-पृथ्वी १. जळ २, अग्नि ३, वायु ४, प्रत्येक वनस्पति ५, द्वींद्रिय ६, श्रींद्रिय ७, चतुरिद्रिय ८, संमूछिम मनुष्य ९, पंचेन्द्रिय भचर, जळचर अने खेचर १२, नारकी १३, भवनपति १४, व्यंतर १५, सूर्य १६, चंद्र २७, नक्षत्र १८, वैमानिक देवो १९, समुद्र २०, पंचेंद्रिय संमूर्छिम तिर्यंच २१, ए एकवीश प्रकारना जीवो असंख्याता जाणवा. तथा जगतना ( लोकना) आकाश प्रदेश १, धर्मास्तिकायना प्रदेश २, अधर्मास्तिकायना प्रदेश ३, एक जीवना प्रदेश ४, स्थितिना अध्यवसाय स्थान ५,