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श्रीमद्देवेन्द्रसूरिकृत सिद्धपंचाशिका.
सिद्धं सिद्धत्यमुअं, नमिउं तिहुअणपयासगं वीरं । मिरि सिद्ध पाहुडाओ, सिद्धसख्वं कमवि बुच्छं ॥१॥ सिद्ध-सिद्ध, प्रसिद्ध (स्वर्ग, मृत्यु पाताळ | सिद्धमरुवं सिद्धनुं सिद्धत्थमुअं-सिद्धार्थ राजाना पुत्रने
पयासयं प्रकाश
स्वरूप
वीरं महावीर स्वामीने किमनि-कांइक नमिउं- नमस्कार करोने सिरिमिपाहुडाओ- बुच्छं-कहीश तिहुअण-त्रण भुवन श्री सिद्धप्रातमाथी
,
अर्थ-त्रण भुवनमां ( केवल ज्ञान वडे) प्रकाश करनार, प्रसिद्ध सिद्धार्थ राजाना पुत्र श्री महावीर स्वामीने नमस्कार करीने श्री सिद्धप्राभृत थकी सिद्ध भगवाननुं स्वरूप कांड़क कड़ीश. १. विवेचन - सिद्धत्सुअं' ए पदना अर्थ आवी रीते पण थया है. सिद्ध एटले अचल के अर्थ एटले जीवाजीवादि पदार्थों श्रुतम द्वादशांगरूप सिद्धातमां जेना एवा वीर प्रभुने अथवा सिद्ध थया है. (मोक्षप्राप्ति रूप ) अर्थ जेमना एवा सुत एटले ( गणधरादि ) शिष्यो छे जेमने एवा वीर प्रभुने, अथवा सिद्धार्थ राजाना पुत्र महावीर स्वामीने नमस्कार करीने सिद्ध भगवाननुं स्वरूप कंइक एटले थोडामा - काणमां कहेशे, जेमणे वांलां कर्मोनो नाश कर्यो के एटले आठे कर्म क्षय कर्या छे तेमने सिद्ध भगवान कहीए. १.
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संतपर्यपरूवणया, दद्दपमाणं च खित्त फुसणा य । कालो अ अंतरं तह, भावो अपाय
दारा ॥ २ ॥