________________
श्री काय स्थिति प्रकरण.
: ६५ ) पामीने पछी फरोयो मिथ्यात्व पामे छे, अने स्यार पछी फरीने समकित पामी मोक्षे जाय के. ए चोथो भांगो जागवी. सादि अनंत नामनो त्रीजी भांगो मिथ्यात्वना विषयमा होतो नथी. ७३.
मां सादिसांत नामनो त्रीजो भांगो मिथ्यात्वने विषे केटलाक काळ सुधी रहे छे ? ते कहे छे-
लहु अंतमुह गुरुअं देसृणमवडूनुग्गल परहं ।
सासाणं लहु समओ आवलिछक्कं च उक्कोसं ॥ ७४ ॥
अर्थ-ते सादि सांत भांगे मिथ्यात्व जघन्यथी अंतर्मुहूर्त सुधी रहे छे, अने उत्कृष्टथी देशे उगा अपार्थ ( अर्थ ) पुद्गल परावर्त सुखी रहे छे १ तथा सास्वादन नामनुं बीजुं गुणस्थानक जवन्यथी एक समय अने उत्कृष्टथी छ आवलि सुधी रहे छे. तेथी बघारे रहेतुं नथी २. ७४.
अजहन्नमणुकोसं अंतमुह मीसगं अह चउत्थं । समहिअतित्तीसयरे उक्कासं अंतमुह लहूअं ।। ७५ ।।
अर्थ-त्री मिश्र गुणस्थानक जघन्य तथा उत्कृष्थी असंख्य समयवाळा एक अंतर्मुहूर्त सुधी रहे छे ३. चोथु अविरत नामनुं गुणस्थानक उत्कृष्टथी तेत्रीश सागरोपमथी कांक अधिक काळ सुत्री रहे छे. कारण के सर्वार्थ सिद्ध विमाननी स्थिति तेत्रीश सागरोपमनी छे, तेमां एक मनुष्य भवनुं आयुष्य वधे छे, ते अपे क्षार एटलं प्रमाण जाणवु, अने जे क्षायोपशमिक समकिनी " साहिति तीसायर खइअं दुगुणं खउवसम्मं " ( क्षाकिने आश्रीने तेत्री सागरोपमथो अधिक स्थिति छे, अने क्षायोपश-कने आश्रीने तेथी बमणी स्थिति छे ) ए स्थळे छामठ सपथको अधिक स्थिति कही छे, ते सम्स्कल छतां पण देशविरति विगेरे गुणस्थानकना अंतर्गतपणाए करीने जाणवी.