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श्री विचार पश्चाशिका.
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आवीने) केटलो काळ जोवे छे.? तेनो विचार (२), अपुद्गली तथा पुद्गलीनो विचार (३), ममूर्छिन मनुष्यनी गति तथा आगति (गमन आगमन) नो विचार (४) पर्याप्ति (५), जीवादिकनुं अल्प. बहुत्व (६), प्रदेश पुद्गल तथा अप्रदेश पुद्गल (७),-कड जुम्मा विगेरे (८), अने पृथ्वी आदिनु परिमाण (९) ए नव विचार कहेवाना प्रारंभमां प्रथम शरीरनुं स्वरुप कहे छे:
उरालिय वेउद्दिय आहारगतेअक्कम्मुणं भणियं । एयाए सरिराणं नवहा भेयं भणिस्सामि ॥२॥
भावार्थ-औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस अने कार्मण ए पांच शरीरना नव भेदोने हुं कहीश. ए नव भेद आ प्रमाणेकारण १, प्रदेश संख्या २, स्वामी ३, विषय ४, प्रयोजन, प्रमाण ६, अवगाहना ७, स्थिति ८, तथा अल्प बहुत्व ९. (२) बायरपुग्गलबद्धं ओरालिय उयारं आगमे भणियं । सुहमसुमेण त तो पुग्गल बंधेण भणियाणि ॥ ३ ॥ ___ अर्थ-औदारिक शरीर बादर (स्थूळ) पुद्गलोथी बंधायेलं छ. तेमां उदार एटले प्रधान अने औदारिक शरीर एटले प्रधान शरीर ए प्रमाणे औदारिकनुं आगमने विषे वर्णन करेलुं . ते (औदारिक) थकी उत्तरोत्तर सूक्ष्म सूक्ष्म पुद्गलना बंधे करीने बंधातां वोजां (चार) शरीरो कहेला छे. ३.
विशेषार्थ-बादर पुद्गयो एटले स्थूळ पुद्गलोथी बंधा. येल-उपचय पामेलु औदादिक शरीर होय छे. ते केवु छ ? उदार एटले प्रधान ते संबंधी आवश्यक सूत्रमा कयु छ के-जिनेश्वरना रुपयी गणधरनुरुप अनंतगुण हीन छे, गणधरना रुपथीअनंतगुणहीन आहारक शरीर छे, तेनाथी अनंतगुण हीन अनुत्तर विमानवासी देवतार्नु रूप के, तेनाथी अनंतगुण होन अच्युत देवनु, तेनाथी