________________
( ५६ )
मूल तथा माषांतर.
छे. ते सर्व कूटो उपर भुवनपतिनीकायनो चालीस दिक्कुपारीओ पोताना परिवार सहित रहे छे. तेमां पूर्व दिशाए जे आठ कूटो छे, तेमनां नाम आ प्रमाणे स्थानांग सूत्रमां कहेलां छे' रिष्ट, तपनीय, कांचन, रजतदिरु, सौस्तिक, प्रलंबक, अंजन तथा अंजन पुलक. ए आठ कूट रुचकनी पूर्व दिशाए आवेला छे. ' ते कूटोमा जे नापनी दिककुमारीओ रहे छे ते आ प्रयाणे - नंदोत्तरा, नंदा, सुनंदा, नंदिवर्धनी, विजया, वैजयंती, जयंती तथा अपराजिता. दक्षिणनां आठ कूटोनां नाम आ प्रमाणे-कनक, कांचन, पद्म, नलिन, शशी, दिवाकर, वैश्रमण, तथा वैडूर्य ए रुचकनी दक्षिण दिशाना आठ कूटो छे. तेमां आ देवीओ बसे छे-समा हारा, सुप्रदत्ता, सुप्रबद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीवी, शेषवती, चित्रगुप्ता अने वसुंधरा पश्चिम दिशाना आठ कूटो आ प्रमाणे- सौ. स्थिक, शुभ, हिमवंत, मंदर, रुचक, रुचकोत्तम, चांद्र अने सुदर्शन, तेमां आ नामनी देवीओ रहे छे - इलादेवी, मुरादेवी, पृथ्वी, पद्मावती, एकनासा, नवमिका, भद्रा तथा अशोका. हवे उत्तरमां जे आठ कूटो छे. तेनां नामो-रत्न, रत्नोच्चय, सर्वरत्न, रत्नसंचय, विजय, वैजयंत, जयंत अने अपराजित, तेमां देवीओ आ प्रमाणे हे अलंबुसा, मिन (श्र) केशी, पुंडरीका, वारुणी, हासा, सर्वमा, श्री अने ही ए आठ उत्तरमा रहेली छे. तथा चित्रा, "चित्रकनका, सुवेजा अने सुदामनी ए चार विदिशाना कूटमां रहेनारी छे, तथा रुपा, रुणशिका सुरुरा भने नकारती ए चार रुचकीनी मध्यमां रहे हे. ५८.
१. आा चार प्रथमना चार सहलाइ कूट उपर रहेगारी