Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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मिलते है, किन्तु वहाँ तत्सम्बन्धी विधि-विधानों का उल्लेख नहीं मिलता है। फिर भी इससे इतना तो सिद्ध होता है कि उस काल में जैन परम्परा में भी संस्कार सम्बन्धी कुछ विधान किए जाते थे। यद्यपि मेरी अवधारणा यही है कि जैन समाज के बृहद् हिन्दू समाज का ही एक अंग होने के कारण जन सामान्य में प्रचलित जो संस्कार आदि की सामाजिक क्रियाएँ थी, वे जैनों द्वारा भी मान्य थी। किन्तु ये संस्कार जैन धर्म की निवृत्तिपरक साधना विधि का अंग रहे होंगे, यह कहना कठिन हैं।
जहाँ तक संस्कार सम्बन्धी स्वतंत्र ग्रंथों की रचना का प्रश्न है, वे आगमिकव्याख्याकाल के पश्चात् निर्मित होने लगे थे। किन्तु उन ग्रंथों में भी गृहस्थ जीवन सम्बन्धी षोडश संस्कारों का कोई उल्लेख हमें नहीं मिलता हैं। मात्र दिगम्बर परम्परा में भी जो पुराणग्रन्थ हैं, उनमें इन संस्कारों के विधि-विधान के मात्र संसूचनात्मक कुछ निर्देश ही मिलते हैं। श्वेताम्बर परम्परा में आचार्य हरिभद्र (लगभग आठवीं शती) के ग्रन्थ जैसे अष्टकप्रकरण, पंचाशक प्रकरण, पंचवस्तु आदि में भी विधि-विधान सम्बन्धी कुछ उल्लेख तो मिलते है, किन्तु उनमें जो विधि-विधान सम्बन्धी उल्लेख हैं वे प्रथमतः तो अत्यन्त संक्षिप्त हैं
और दूसरे उनमें या तो जिनपूजा, जिनभवन निर्माण, जिनयात्रा, मुनिदीक्षा आदि से सम्बन्धित ही कुछ विधि-विधान मिलते है या फिर मुनि आचार सम्बन्धी कुछ विधि-विधानों का उल्लेख उनमें हुआ है। गृहस्थ के षोडश संस्कारों का सुव्यवस्थित विवरण हमें आचार्य हरिभद्र के ग्रंथों में भी देखने को नहीं मिलता हैं। आचार्य हरिभद्र के पश्चात् नवमीं शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी तक मुनि आचार सम्बन्धी अनेक ग्रंथो की रचना हुई। जैसे - पादलिप्तसूरिकृत निर्वाणकलिका, जिनवल्लभसूरि विरचित संघपट्टक, चन्द्रसूरि की सुबोधासमाचारी, तिलकाचार्यकृत समाचारी, हेमचन्द्राचार्य का योगशास्त्र, समयसुन्दर का समाचारीशतक आदि कुछ ग्रन्थ है। किन्तु ये सभी ग्रन्थ भी साधना परक और मुनिजीवन से सम्बन्धित आचार-विचार का ही उल्लेख
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