Book Title: Prashnavyakarana Sutra
Author(s): Rangvimal Gani, Mafatlal Zaverchand
Publisher: Mukti Vimal Jain Granthmala
View full book text
________________
कयरे ते ?, जे ते सोयरिया मच्छबंधा साउणिया वाहा कूरकम्मा [वाउरिया] दीवित-बंधणप्पभोग-तपगलजाल-वीरलगायसीदन्भ-वाग्गुरा-कूडछलियाहत्था हरिएसा साउणिया य वीदंसगपासहत्थाः वणचागा
लुद्धमा महुथायाः पोतघाया एणीयारा पोसाणीयारा सर-दह-दीहिम-तलाग-पालल-परिगालण-मलण-सोसवFधण-सलिलासयसोसमा विसगरस्स य दायगा उत्तणवल्लरा दवग्गिणिया पलीवका कूरकम्मकारी इमे य बहवे
मिलकावुजातीया, के ते?, 18 तत्र कतरे ये कृष्यादिकारणः पाणिनोघ्नन्ति इतिप्रश्नः? अथोत्तरमाह-येशूकराणां मृगयां कुर्वन्ति ते शौकरिकाः, ये मत्स्यान्
बनन्ति ते मत्स्यबन्धाः, शकुमान पक्षिणो नन्ति ते शाकुनिकाः, ये मृगान् घन्ति ते व्याधाः, क्रूरकर्माणः, द्वीपिका चित्रकान् रक्ष
यित्वा मृगमारणाय बन्धनप्रयोगवन्तः, मत्स्यबन्धनार्थ तत्मगलं-बडिशं मत्स्यबन्धनजालं वीरल्लका-श्येनाभिधानः शाकुनिः मृगादि[विनाशाय लोहमयी दर्भमयी वा वागुरा पाशरचना शाकूटा [सा कुटेन] स्थाप्यते पक्षिग्रहणार्थ तरुजालिकायाः, कचित वागुरिया
पाठे वायुरिका-मृगजालिका तान् बनन्ति ते वागरिका जाछिकायाः, छेलिका कथ्यते सा हस्ते येषां ते तादृशा हरिकेशाश्चाण्डालविशेषाः, कुणिकास्तदीयसेवकाः, वीदंशकपाशहस्ता येन पक्षिणाः अन्ये पक्षिणो गृह्यन्ते ते वीदंशाः तदेव पाशो हस्ते येषां तेताशा वनधाराः शकता, लुब्धका व्याधाः [पारधी इति भाषा] मधुवातकाः मथुपातनशीला ये ते, पोता-लघुपक्षिणस्तान सघातका, एणी मृगीमगग्रहणा हरिणीं चास्यन्ति ते एणीचासः, तान् पोषयन्ति ते पोषणीयाराः, सशे-जलाशयः हो आगाधनको
१. इत्यपि क्वचिदधिको पाठः

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204