Book Title: Pramey Ratnamala Vachanika Author(s): Jaychand Chhavda Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti View full book textPage 9
________________ इस ग्रंथका दूसरा नाम परीक्षामुखपंचिका भी है। पदोंके जुदे २ कर अर्थ करनेको पंचिका कहते हैं क्योंकि कहा भी है पंचिका पदभंजिका इसी अर्थको पंडित जयचंद्रजी छावड़ाने भी कहा है 'सूत्रनिके पद न्यारे करि तिनका न्यारा न्यारा अर्थ कहिये ताकू पंचिका कहिये है ' इत्यादि । इस टीकामें विशेषताके साथ अर्थकी ऐसीही रचना है इस लिये इसका-परीक्षामुख पंचिका नाम भी वास्तविक है। इस टीकाका प्रमेय रत्नमाला जो नाम है वह यथा नाम तथा गुणसे खाली नहीं है। क्योंकि रत्नचीज जिस तरह स्वपरप्रकाशक होती है उसी तरह प्रत्यक्ष परोक्षादि रूप अनेक प्रकारके प्रमाण स्वरूप प्रमेयकी माला अर्थात् पंक्ति स्वरूप यह ग्रंथ है। __ तथा इस नामसे यह सूचित किया है कि भाग्यशालियोंके हृदयको यह भूषित करनेवाली हैं और भाग्यहीनोंको दुर्लभ है। जैसे रत्नमाला भाग्यशालियोंको ही प्राप्त होकर उनके हृदयको भूषित करती है भाग्यहीनोंको उसकी प्राप्ति होना ही दुर्लभ है इसी प्रकार भाग्यशील विशिष्ट क्षयोपशमके धारक ही इसको धारण कर सकते हैं भाग्यहीन मंदक्षयोपशमी इसको धारण नहीं कर सकते, इसी अर्थको श्री वीरनंदिस्वामिजीनें भी सूचित किया है। गुणान्विता निर्मलवृत्तमौक्तिका नरोत्तमैः कंठविभूषिणीकृता। न हारयष्टिः परमेव दुर्लभा समंतभद्रादिभवा च भारती ॥१॥ ___ यह ग्रंथ भी परीक्षामुख सूत्र ग्रंथके समान छह समुद्देशोंमें विभक्त है उनमेंसे छहोंके ही नाम विषय प्रतिपादनकी अपेक्षासे रखे गये हैं। वे इस प्रकार हैं। प्रमाण स्वरूप समुद्देश १ प्रत्यक्षसमुद्देश २ परोक्षसमुद्देश ३ विषय समुद्देश ४ फलसमुद्देश ५ आभास समुद्देश । ६ । इन छहों समुद्देशोंमेंसे प्रत्येक २ समुद्देश में क्या २ विषय है यह यद्यपि इन समुद्देशोंके नामसे ही प्रतीत होता है तथापि इनमें विशेष २ विषय कोन २ सें है इस बातकी बहुत आवश्यकता है। इसी हेतुसे मैने पाठकोंके संतोषके लिये कुछ विषयसूचि और सूत्र सूची बनाकर ग्रंथके साथ लगादी है उससे इस ग्रंथके पाठक ग्रंथका कुछ ज्ञान तथा महत्व समझ सकेंगे। इस ग्रंथकी देशभाषा वचनिकामें टीका श्रीमत् पंडित जयचंद्रजी छावड़ाने की है जिसमें सूत्र तथा प्रमेय रत्नमालाके पदार्थ तथा भावार्थ बहुतही मनोज्ञता १ जैन धर्ममें ज्ञानको स्वपरप्रकाशत्व माना है।Page Navigation
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