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(xxii ) संस्करण-1972 (प्रथम भाग), एवं दि. जैन (त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर, वी.नि. संवत् 2507,
3. प्रमेयकमलमार्तण्ड : एक समीक्षात्मक अध्ययन (दो भागों में) (अप्रकाशित) - कुमारी निर्मला जैन, वाराणसी, 1976
4. Prameyakamala-märtanda : a commentary on shri Manik Nandi's Pareeksha Mukh Sutra (3rd ed.) by Mahendra Kumar Shastri, Foreword- V.N. Jha. Pub. Sri Satguru Publications, Delhi-1990
5. प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन- डॉ. उदयचन्द्र जैन, प्रका. प्राच्य श्रमण भारती, मेरठ, 1998
6. 'जैन विद्या'-24 (आचार्य प्रभाचन्द्र विशेषांक), मार्च-2010 (वार्षिक शोध पत्रिका) - प्रका. जैन विद्या संस्थान, श्री महावीर जी राजस्थान
___7. जैन न्याय को आचार्य प्रभाचन्द्र का योगदान- डॉ. योगेश कुमार जैन, प्रका. जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं (341306) राज., 2015
इस प्रकार हमने देखा कि आचार्य प्रभाचन्द्र बहुमुखी प्रतिभा के धनी महातपस्वी थे। जैसे दर्शन के क्षेत्र में उनका जो योगदान है वह अद्भुत है। उन्होंने जितना कार्य किया है उस कार्य का उतना मूल्यांकन अभी तक नहीं हो पाया है जितना होना चाहिए था। मुझे विश्वास है कि विद्वान् तथा शोधार्थी आचार्य प्रभाचन्द्र के कार्यों पर अनुसन्धान करके ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र को अधिक समृद्ध करते हुए उनके व्यापक चिन्तन का बहुविध प्रसार करेंगे।