Book Title: Prakrit Sukti kosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jayshree Prakashan Culcutta

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Page 13
________________ स्वकथ्य 'सूक्तं शोभनोक्ति विशिष्टम्' अर्थात् विशिष्ट रूप में सुशोभन कथन ही सूक्ति है, जिसमें किसी सामान्य सत्य की सारगर्भित अभिव्यक्ति होती है। सूक्तियों का महत्त्व सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक रहा है। सूक्तियों के श्रवण या पठन से मात्र मन ही आलोकित नहीं होता, अपितु मस्तिष्क भी आलोकित होता है। अतः इसका सम्बन्ध मन और बुद्धि दोनों से है। सूक्तियाँ काव्य का महत्त्वपूर्ण अंग है। कभी-कभी तो अर्थ-गौरवपूर्ण एक सूक्ति सम्पूर्ण काव्य को मूल्यवान बना देती है और कभी-कभी वह स्वयं सैकड़ों ग्रन्थों की अपेक्षाकृत अधिक मूल्यवान् हो जाती है। प्रस्तुत ग्रन्थ प्राकृत-सूक्तियों का कोश है। आज प्राकृत-साहित्य के पुनरुद्धार की अपरिहार्यता है। एक युग था जब प्राकृतभाषा लोकभाषा थी, सम्प्रति वही भाषा विद्वानों की भाषा हो गई है। इस भाषा के अध्येता एवं अध्यापक दोनों ही दुर्लभ होते जा रहे हैं। प्राकृत-साहित्य अति समृद्ध है। इसे समृद्ध करने का श्रेय मुख्यतः जैन-परम्परा को है। भगवान महावीर का धर्म इसी भाषा के माध्यम से जनसाधारण का धर्म बना था। इसीलिए प्राकृतसाहित्य में अधिकांशतः जिनवाणी ही मुखरित है। प्राकृत-साहित्य सूक्त-रत्नाकर है। इसमें ऐसे अनेकानेक सूक्त-रत्न विकीर्ण हैं, जिनकी प्रभा प्रस्तुत कोश में सहज दृष्टिगत है। इसमें प्राकृत-निबद्ध प्रसिद्ध कृतियों की आचार-विचार विषयक मार्मिक Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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