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लेनी चाहिए। इस भाषा के ग्रंथों के प्रायः हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हो गये हैं। अर्धमागधी-कोश आदि की सहायता से भी इस भाषा का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। उससे अर्धमागधी की प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट हो सकेंगी। कतिपय विशेषताएं:
1-सामान्य प्राकृत में 'क' का प्रायः लोप होता है, किन्तु अर्धमागधी में प्रायः 'क' का 'ग' हो जाता है। यथा- एक) एग, श्रावक > सावम __2-सामान्य प्राकृत में 'त' का लोप होता है, किन्तु अर्धमागधी में प्रायः 'त' का 'त' सुरक्षित रहता है।
यथाः - भणति , भणति, जाति , जाति
3-अकारान्त पुलिंग प्रथम एकवचन में प्रायः 'ए' प्रत्यय होता है। यथा-: जिणे, से आदि। ___4-चतुर्थी एवं षष्ठी विभक्ति एक है, परन्तु चतुर्थी अकारान्त पु. एवं नपु. लिंग में आते ' एवं 'आए' प्रत्यय भी होते हैं। - 5-पंचमी एकवचन एवं बहुवचन के सभी लिंगों मे तो, 'तु' प्रत्यय होते है। यथाः-जिणातो, जिणातु (पु.), मालातो, मालातु (स्त्री.)
6-अकारान्तदि पु. एवं नपु. लिंग शब्दों के सप्तमी एकवचन में ‘असि' प्रत्यय होता है और सर्वनाम शब्दों में अस्सिं' भी होता है। यथा:-देवंसि, वणांसि, भाणुसि, इमंसि, कस्सि। ___7-भविष्यत् प्रथम पुरुष एकवचन में 'भण' की तरह स्व क्रियाओं में इस्सं' होता है। और दीर्घान्त (दी, णो,) में हं, प्रत्यय का भी प्रयोग होता है। यथाःभणिस्सं, दाहुं, काहं।
8-(1)भूतकाल में स्वरान्त क्रियाओं में आसि', 'आसि', 'त्था', 'ईअ', प्रत्यय सभी पुरुषों में भणित्था, भणीअ, होसी, होही, णेसी, णेही
(2)उत्तम पुरुष बहुवचन में 'इंसु' 'अंसु' प्रत्यय होते हैं। यथाः- गच्छिंसु छिदिसुं, भणंसु।
9-संबंध कृदन्त में त्ता, च्चा, टू होते हैं। यथा-भणित्ता, भणेत्ता, किच्चा, सोच्चा, कटू, भणिय, भणिया आदि। 100 प्राकृत रत्नाकर