________________
(5)
पर्याप्त सभावना है । अपने ऐतिहासिक महत्त्व के अतिरिक्त ये ग्रन्थ प्रशस्तिये तत्तद ग्रन्थो, उनके कर्त्ताओ, उक्त ग्रन्थो की प्रतियो आदि से सम्बन्धित जानकारी के लिए अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होती है ।
साहित्यिक इतिहास - जैन साहित्य की प्रतीत कालीन प्रगति और इतिहास पर अभी तक कोई भी एक पूर्ण एव प्रमाणिक ग्रन्थ निर्मित नही हुआ है । भारतीय साहित्य के सामान्य इतिहास मे हिन्दी मस्कृत प्रादि भाषाओ के माहित्य से सम्बधित अथवा दर्शन, कला, विज्ञान आदि विविध विषयक साहित्य के इतिहास ग्रन्थो मे किसी भी कारण से क्यो न हो, प्राय जैन साहित्य की उपेक्षा ही की जाती रही है। प्रथम तो इन पुस्तको मे जैन साहित्य का कोई उल्लेख ही नही रहता, और यदि किसी किसी मे रहता भी है तो अत्यत्प, सक्षिप्त, गौरण और बहुधा त्रुटिपूर्ण भी। उसे कोई महत्व भी नही दिया जाता और न साहित्यक विकास में उसके उपयुक्त स्थान पर कोई प्रकाश डाला जाता है । किन्तु विभिन्न भाषाओ मे रचित जैन साहित्य के इतिहास पर जो कुछ थोडा बहुत साहित्य अब तक प्रकाशित हो चुका है वही पढकर उसके वास्तविक महत्त्व तथा भारतीय साहित्य मे उसके सम्माननीय स्थान का बहुत कुछ अनुमान हो जाता है । जैन साहित्य के इतिहास विषय पर निम्नलिखित पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है - प० नाथूराम प्रेमीकृत 'दिगम्बर जैन ग्रन्थ कर्ता और उनके ग्रन्थ,' 'हिन्दी जैन साहित्य का सक्षिप्त इतिहास,' 'कर्णाटक जैन कवि,' 'जैन साहित्य और इतिहास' । श्रीयुत ग्रार-नरसिहाचार्य कृत 'कर्नाटक कवि चरिते' श्री मोहनलाल देसाई कृत 'गुर्जर कवि' - २ भाग, प्रो० ए० सी० चक्रवर्ती कृत 'जैन लिटरेचर इन तामिल' । श्री मूलचन्द वत्मल न जैन कवियो का इतिहास' वावू कामताप्रसाद कृत 'हिन्दी जैन साहित्य का सक्षिप्त इतिहास | राजस्थानी भाषा के जैन साहित्य पर श्री अगरचन्द नाहटा ने अच्छा कार्य किया है । हिन्दी के पुरातन जैन गद्य साहित्य पर हम स्वयं एक पुस्तक लिख रहे है । इन पुस्तको के अतिरिक्त सुयोग विद्वानो द्वारा सम्पादित प्राचीन ग्रन्थो के आधुनिक सस्करणो की विद्वत्ता पूर्ण
I