Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 10
________________ ( ४ ) ft चाहता था कि किसी के सामने इसकी सुंदरता का वर्णन करके इसका हरण करा दूं, कभी जी में आता था कि सत्यभामा को माया विशेष से किसी पर पुरुष में आसक्त दिखाकर कृष्णजी को इस से विमुख कर दूं, परंतु इन बातों को कृष्ण जी के दुख का कारण जानकर उन्हों ने अंत में यह उपाय सोचा कि स्त्रियों को जैसा सौत का दुख होता है ऐसा किसी का नहीं होता । अतएव अढ़ाई द्वीप की भूमि में विचर कर किसी सुंदर कन्या की खोज करनी चाहिये । इसी खोज में नारद जी सर्वत्र भ्रमण करने लगे, किंतु कहीं भी ऐसी कन्या न मिली जो सुंदरता में सत्यभामा की समानता कर सके । इस से नारद जी को बड़ा खेद हुआ । * तीसरा परिच्छेद * क दिन चलते २ कुण्डनपुर नगर में पहुँचे । वहां भीष्म नाम का राजा राज्य करता था । नारदजी को सभा में आया देखकर राजा भीष्म ने यथोचित उनका आदर सत्कार किया और उनके शुभागमन से अपने को बड़ा पुण्यवान समझा । नारदजी ने राजकुमार को जो उनके सामने बैठा था अत्यन्त सुंदर रूपबान देखकर विचार किया कि यदि इसकी बहिन होगी तो

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