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___ (३७) आप का सेवक हूं। लीजिए, ये मुकुट, अमृतमाला और ओकाश गामिनी पादुका आप की भेंट हैं । इस तरह उस दैत्य को अपना बनाकर कुमार वृक्ष पर से नीचे उतर आया ।
अब वे राजकुमार उसे कपिल नाम के वन में लेगए । वहाँ एक असुर हाथी का आकार धारण करके प्रगट हुआ
और कुमार से युद्ध करने लगा। अंत में उसे भी जीतकर वहां से सुरक्षित चला आया। अबतो राजकुमार मन में बड़े
खेद खिन्न हुए और उसे अनुबालक शिखर पर लेचले । वहां भी पहिले की नाई सर्प आकार धारण करने वाले एक दैत्य से मुठभेड़ होगई, मगर कुमार ने उसे भी शीघ्र जीत लिया और उससे अश्वरत्न, छुरी, कवच और मुद्रिका प्राप्त करके सकुशल लौट आया।
उसे देखकर सब भाई आपस में विचार करने लगे कि यह पापी मरता ही नहीं । इसका क्या करें । अबकी बार वे उसे दो और पर्वतों पर लेगए मगर वहां भी उसकी जय हुई
और वहां के देवों ने कंठी, बाजूबंद, कड़े, कटिसूत्र, शंख तथा पुष्पमई धनुष आदि दिव्य वस्तुओं से उसका सन्मान किया।
जब यहां पर भी दाल न गली तब क्रोधित हुए राजकुमार उसे पद्म नामक बन में ले गए। यहां उसने देखा कि वसंतक नाम के विद्याधर ने एक दूसरे मनोजव विद्याधर