Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 44
________________ (३८) को एक वृक्ष के नीचे बांध रक्खा है । कुमार ने दया करके मनोजव को बंधन से मुक्त कर दिया जिसके उपलक्ष में विद्याघर ने कुमार को एक, बहुमूल्य हार और एक इंद्रजाल ये दो विद्याएँ दी । पश्चात् कुमार ने उन दोनों विद्याधरों का आपस में मेल भी करा दिया जिससे संतुष्ट होकर वसंतक विद्याधर ने अपनी एक अतिशय सुंदरी कन्या कुमार की भेट की। देखिये पुण्य से क्या २ वस्तुएँ प्राप्त नहीं होजाती । प्रद्युम्न तो भाग्य का धनी था, भाई भले ही उसे मौत के मुँह में ढकेलते थे मगर वह वहां से लाभही प्राप्त करके आता था। इस बार वे उसे काल वन में ले गए । यहां भी उसे एक दुष्ट दैत्य का सामना करना पड़ा, जिसने परास्त होकर कुमार की चाकरी स्वीकार की और उसे मदन मोहन, तापन, शोषण और उन्मादन इन पांच विख्यात पुष्प वाणों सहित एक पुष्प धनुष भेट किया। उसी समय से मनुष्यों को मोहित करने वाला और स्त्रियों को उन्मादन करने वाला वह कुमार यथार्थ में मदन अर्थात् कामदेव नाम को धारण करनेवाला होगया। इस लाभ को लिए हुए आता देख कर राजकुमारों का जी जल गया। अब वे उसे भीमा नाम की गुफा में ले गए । कुमार ने वहां के अधिकारी देव को जीत कर उससे भी एक पुष्पमई छत्र, और एक सुंदर शय्या भेट में प्राप्त की।

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