Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 84
________________ कर संतुष्ट हुए और नगर में चलने के लिए तैय्यारी करने लगे । नाना प्रकार की शोभा की गई, शहर सजाया गया । कृष्ण जी के साथ कुमार ने नगर में प्रवेश किया। कुमारको देखकर सब कोई आनंद में मग्न हो रहे थे पर सत्यभामाके महल में आज रोनाही पड़रहा था। ___* सत्ताईसवां परिच्छेद * AAPस प्रकार कितने ही दिन आनंद में बीतगए। । एक दिन कृष्ण जी ने अपने मंत्रियों से कहा कि अब प्रद्युम्न का विवाह करना उचित V है। कुमार ने विनय पूर्वक निवेदन किया कि महाराज मेरा विवाह महाराजा कालसंवर तथा महारानी कनकमाला के समक्ष होगा । वास्तव में मेरे वेही पोषक व रक्षक हैं । यह सुनते ही कृष्ण जी ने दूत भेजकर कालसंवर तथा रानी कनकमाला को बड़े आदर सत्कार पूर्वक बुलाभेजा और बड़ी सजधज के साथ उनका स्वागत किया। विद्याधरों सेही प्रद्युम्न का रति तथा उदधिकुमारी आदि पांच सौ आठ कन्याओं से पाणिग्रहण कराया, तत्पश्चात् बड़े समारोह के साथ उनका नगरी में प्रवेश कराया। - बहुत दिनों तक राजा कालसंवर द्वारिका में कृष्ण जी के अतिथि रहे । एक दिन उन्हों ने अपने देश जाने की

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