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क्या 'बृद्ध किसी को भी नहीं छोड़ती। फिर मैं जवान हूं, अभी भोग भोगने योग्य हूं, इसलिए क्या मौत मुझे छोड़देगी। यदि ऐसा है तो बतलाइये आदिनाथ भगवान के भरत चक्रवर्ती तथा आदित्य कीर्ति आदि प्रतापी पुत्र कहां गए । राम कहां गए, लक्ष्मण कहां गए, गजकुमार कहां गए, जयकुमार कहां गए और बलवान बाहुबली भी कहां गए ।
इस प्रकार वैराग्य उत्पन्न करने वाले प्रिय वचनों से पिता को समझाकर और शम्भुकुमार को अपने पद पर स्थापित कर के कुमार माता के महल में गया और माता से भी आज्ञा के लिए प्रार्थना की । माता इन शब्दों को सुनते ही पछाड़ खाकर भूमि पर गिर पड़ी । उसे अ पने तन बदन की कुछ सुधि न रही । वास्तव में माता का प्रेम उत्कृष्ट और निस्वार्थ प्रेम होता है । परंतु थोड़ी देर में सचेत होने पर कुमार उसे भी संसार का स्वरूप समझाने लगा और कहने लगा, माता ! बुद्धिमानों को शोक करना उचित नहीं, त निश्चय जानती है कि जब तक मोह है तभी तक बंधन है। जन्म के पीछे मरण लगा हुआ है, यौवन के पीछे बुढ़ापा है और सुख के पीछे दुःख लगा हुआ है। इंद्रियों के विषय भोग विष के समान दुःख दाई हैं। अतएव माता मुझ पर प्रसन्न होकर मुझे दीक्षा लेने की आज्ञा दीजिए