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पुत्र के ऐसे बचन सुनकर रुक्मणी का मोह दूर होगया । वह संसार की अनित्यता तथा असारता भलीभांति समझ गई और कहने लगी, हां बेटा मैं मोह के वश अंधी हो रही थी, तूने मुझे, प्रतिबोधित किया, तू मेरा सच्चा गुरु है । मैं भी अब मोह और स्नेह को छोड़कर तपोवन में प्रवेश करती हूं।
फिर कुमार अपनी स्त्रियों की तरफ़ देखकर उनकोभी समझाने लगा जिसे सुन कर सबकी सब दुःख से व्याकुल होगई, पर थोड़ी देर में कहने लगी कि जब हमने आप के साथ बहुत भोग भोगे तब आप के ही साथ दीक्षा लेकर पवित्र तप भी करेंगी। आप सहर्ष कर्मों के क्षय के लिये जिन दीक्षा ग्रहण करें।
इस प्रकार शांतिता और वैराग्य के बचन सुनकर कुमार बहुत संतुष्ट हुआ । उस ने अपनी स्त्रियों से छुटकारा पाकर उसी समय समझ लिया कि बस अब मैं संसार रूपी पिंजरे से निकल आया । फिर क्या था, हस्ती पर आरूढ़ होकर घर से निकल पड़ा और लोगों के जय हो, जय हो, आदि आशीदि रूप बचन सुनते हुए गिरनार पर्वत पर पहुंचा। वहांपर उस ने भगवान का समवसरण देखा । आँगन के पास पहुंचते ही हाथी पर से उतर कर राज्य विभव तथा छत्र चंवरादि को त्याग दिया, और विद्याओं तथा १६ लाभों को स्त्रियों