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उनके साथ अनेक श्रावक, श्राविकाओं ने भी दीक्षा लेली । सैकड़ों ने ब्रत धारण किए और हज़ारों ने प्रतिज्ञाएं ली और परम भट्टारक श्रीतीर्थकर भगवान नेमिनाथ स्वामी के मुखाविंद से यह सुनकर कि यह द्वारिका नगरी १२ वर्ष के पश्चात् द्वीपायन मुनि के कोप से नष्ट होजाएगी, और जरत्कुमार के बाण से कृष्ण जी की मृत्यु होगी, अनेक द्वारिका निवासी तथा यादव गण भी वैरागी होकर सर्वज्ञ देवकी शरण को प्राप्त होगए। - प्रद्युम्न कुमार ने भी अनेक सांसारिक सुख भोग कर जान लिया कि निश्चय से यह संसार असार है, अनित्य है, अशरण है, इस में कोई भी वस्तु शास्वत अर्थात् सदैव रहने चाली नहीं है । केवल जिन दीक्षा ही कल्याणकारी है, इसी से भव २ के दुःख नाश होते हैं, और जन्म, जरा मृत्यु के संकट कटते हैं। - ऐसा विचार कर के एक दिन कुमार श्रीकृष्ण महाराज की सभा में गया और अवसर पाकर कहने लगा, हे पिता, मैंने इस संसार के बहुत कुछ सुख भोग लिए, मेरी इन से प्ति होगई, अब मुझे आज्ञा दीजिये कि मैं मोक्ष पद प्राप्त करने का उपाय करूं, अर्थात् संसार भ्रमण से मुक्त करने वाली जिनेंद्र भगवान की दीक्षा धारण करूं। ... . कुमार के मुख से ऐसे बचन सुनते ही कृष्ण नारायण
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