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कराऊ । जब न सेना है और न प्रजा तो फिर किस के ऊपर छत्र धारण किया जाएगा । कृष्ण जी के मुख से ऐसे दीनता के वचन सुनकर नारद मुनि ने कुमारको इशारा किया । कुमार ने सारी सेना को लीला मात्र से उठा दिया । सब जीते जागते खड़े होगए और कुमार से अति स्नेहपूर्वक मिले ।
कुमार ने समुद्र विजय तथा बलभद्र आदि गुरु जनोंको मस्तक नमाकर प्रणाम किया और अगणित राजाओं को हृदय से लगाकर तथा कुशल प्रश्न पूछकर संतुष्ट किया । भानुकुमार को छोड़कर सम्पूर्ण बंधुजनों को अपार हर्ष हुआ। - इस मेल मिलाप के पश्चात् कृष्ण जी ने कुमारसे कहा बेटा ! जाओ अपनी माता को ले आओ। कुमार ने नीचा सिर कर लिया । तब नारदजी बोले, सच है संसार में अपनी अपनी स्त्री सबको प्यारी होती है । कृष्ण जी ! आपने इस प्रकार क्यों नहीं कहा कि अपनी माता और स्त्री को लेआओ। इस के उत्तर में कृष्ण जी ने कहा, महाराज, मुझे क्या ख़बर कि इसे बहू भी प्राप्त होगई है, कहिए तो इसे बहू कहांसे मिली। तब नारद जी ने उदधिकुमारी के हरण के समाचार सुनाए जिस से कृष्ण जी बड़े प्रसन्न हुए और बोले, बेटा ! जाओ . अपनी माता और स्त्री को ले आओ । कुमार ने पिता की आज्ञा पाकर विमानको नीचे उतारा । सब एक दूसरे से मिल