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करो । ऐसे तीक्ष्ण कठोर वचन सुनकर श्री कृष्ण जी धनुष को खींचकर शीघ्रता से शत्रु पर टूट पड़े । कुमारने भी अपना अर्ध चंद्र चक्र चलाया और उनके धनुष को तोड़डाला | कृष्ण ने दूसरा धनुष धारण किया पर कुमार ने उसे भी तोड़डाला
अब कुमार हंसी की बातों से नारायण को ताड़ना देने लगा, जिससे दुखी होकर कृष्ण जी कुमार पर बड़े तीक्ष्ण बाण चलाने लगे ।
भावार्थ दोनों ने एक दूसरे पर अपनी २ विद्या के बल से अनेक प्रचंड बाण चलाए पर कृष्णजी ने जो शस्त्र कुमार पर चलाए वे यद्यपि अमोघ थे परंतु व्यर्थ ही गए क्योंकि यह एक नियम है कि जितने देवोपनीत बाण होते हैं वे अपने कुल के ऊपर कभी नहीं चलते । अब कृष्ण जी को बड़ी चिंता हुई। यह निश्चय करके कि बिना मल्लयुद्ध किए यह शत्रु नहीं जीता जा सकता, वे रथ से कूद पड़े । कुमार भी पिता को देख कर रथ से उतर पड़ा और शीघ्रता से आगे बढ़ा। दोनों को मल्ल युद्ध के लिए तैयार देख कर विमान में बैठी हुई रुक्मणी और उदधिकुमारी ने नारदजी से कहा हे महाराज, अब आप इन्हें रोकने में विलम्ब न करें, इस बाप बेटे की लड़ाई से हमारी सर्वथा हानि है ।
नारदजी शीघ्र ही आकाश से उतर कर उन शूरवीरों