Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 79
________________ इस अपरिचित पुरुष के ऐसे वचन सुनते ही सारी सभा में खलबली मच गई । यह कौन है, क्या है, होने लगा। सारे यादवगण तथा शूरवीर सुभट क्रोध से विह्वल होगए । तुरंत रण भेरी बजवाई गई । बात की बात में सारी सेना सजधज कर रणागन में जमा होगई और शीघ्रही कूच का हुक्म बोला गया । समस्त वीर, योद्धा, हाथी सवार, घुड़सवार, रथसवार तथा पैदल लैन बांधकर चलने लगे । बाजे बजने लगे। हाथियों की चिंघाड़ से, घोड़ों की हिनहिनाहट से चारोंओर कोलाहल मचगया । उधर कुमार ने भी रुक्मणी को नारदजी तथा बहू के समीप विनीत भाव से बिठाकर कृष्ण जी की सेना के समान एक बड़ी भारी माया मई सेना बनाई। * छब्बीसवां परिच्छेद * FO000 व योग से उन दोनों सेनाओं का बहुत जल्दी बीच है में ही संघट्ट हो गया और घोर युद्ध होने लगा। ॐ हाथी सवार हाथी सवारों से जुट गए, घुड़ सवार घुड़ सवारों से लड़ने लगे, पैदल पैदलों के साथ भिड़गए और रथवाले रथवालों के साथ लड़नेलगे । इस प्रकार सब के सब शूरवीर युद्ध करने लगे। धड़ाधड़ सिर कटने लगे, छत्र चंबर टूटने लगे, घोड़े थक २ कर गिरनेलगे, रथ जर्जर होगए। कभी कुमारकी सेना कृष्ण की सेनाको हा *00000000

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