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से यह सुन कर कि तू प्रद्युम्न का इस जन्म मेंही भाई होगा, कृष्ण महाराज की सभा में आया और एक रत्नमई हार देकर अपने आगमन की सूचना देगया। कृष्ण जी ने यह विचार कर कि सत्यभामा और प्रद्युम्न कुमार का बिगाड़ रहता है अतएव इसे सत्यभामा के गर्भ में अवतरण करना चाहिए, जिस से इन में प्रीति होजाय, सत्यभामा को अमुक दिन, अमुक स्थान में आने के लिए कहा । दैव योग से कुमार को भी यह बात मालूम होगई, उसने रुक्मणि माता की आज्ञानुसार जाम्वती रानी को जिस से महाराज रुष्ट रहते थे रूप बदलने वाली अंगूठी देकर और सत्यभामा का रूप धारण करा के नियत तिथि पर नियत स्थान में महाराज के पास भेज दिया । महाराज ने बड़ी प्रसन्नता से उसे सत्यभामा समझ कर उसके साथ भोग किया और उक्त दैव द्वारा दिया हुआ हार उसे दे दिया। .
पुण्य के उदय से कैटभ का जीव स्वर्ग से चय कर उसके गर्भ में स्थित होंगया । जाम्बती ने तब अंगूठी उतार ली और असली रूप में आगई जिसे देख कर महाराज को बड़ा आश्चर्य हुआ। . थोड़ी देर में असली सत्यभामा भी आ पहुँची और उस के गर्भ में भी स्वर्ग से चय कर कोई देव आगया।