________________
(७६ ) अभिलाषा प्रगट की। कृष्णजी ने कनकमाला को नानाभांति के बहु मूल्य वस्त्राभरण देकर और बड़ा आभार प्रगट कर के उन को विदा किया। प्रद्यम्न मोह वशात बहुत दूर तक उन के साथ गया, फिर उन के चरणकमलों को नमस्कार करके तथा अपनी विनय से उन्हें संतुष्ट करके द्वारिका को लौट आया । नारदजी भी विवाह कार्य के पश्चात् अपने इच्छित स्थान को चले गए। । ___ अनंतर पिता की भक्ति के भार से नम्र, सुख-सागर के मध्य में विराजमान देवों द्वारा सेवनीय, देवपूजा, गुरु पूजादि षटकर्मों में तत्पर काम कुमार ने सुख ही सुख में बहुत समय व्यतीत कर दिया। सारी पृथ्वी में उसकी कीर्ति फैल गई, जहां तहां उसी की कथा सुनाई देने लगी । यह सब पूर्वोपार्जित पुण्य ही की महिमा है ।
* अट्ठाईसवां परिच्छेद * वास्तव में पुण्य बड़ा प्रबल है । पुण्य से सदैव इष्ट
संयोग तथा अनिष्ठ वियोग होता रहता है।
पुण्य के महात्म्य से ही प्रद्युम्न के पूर्वभव के छोटे भाई कैटभ का जीव जो सोलहव स्वर्ग में इंद्र पदवी के अकथनीय सुख भोग रहा था, श्री जिनेन्द्रदेव की दिव्यध्वनि
1XXXXXXXYY
XXXX
XXXXXXXXX