Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 78
________________ (७२) माता-बेटा यह तो ठीक है, पर यादव लोग बड़े वलवान हैं। वे तुझ से कैसे जीते जावेगे । ___कुमार-माता इस विषय की तू कुछ चिंता मत कर, तू अभी देखेगी कि श्री नेमनाथ को छोड़ कर और सब यदुवंशी कैसे बलवान हैं । हां तू एक बात मेरी मान ले । तू मेरे साथ विमान में बैठने के लिए चल, बस, कृपा करके शीघ्र चल यही मैं तुझ से याचना करता हूं। .. रुक्मणी कुछ सोच में पड़ गई पर अंत में उसने चलना स्वीकार करलिया । स्वीकारता पाते ही कुमार ने माता को हाथों से उठा लिया और आकाश में लेगया और यादवों की राज्यसभा के ऊपर ठहर कर बल्देवजी तथा कृष्णजी के सन्मुख होकर बोला, हे यादवो ! हे भोजवंशियो ! हे पांडवो! और हे कृष्ण की सभा में बैठे हुए सुभटो! लो देखो, मैं विद्याधर भीष्मराज की पुत्री, श्रीकृष्ण की प्यारी साध्वी स्त्री रुक्मणी देवी को अकेला हर कर ले जाता हूं, यदि तुम में कुछ शक्ति हो तो आकर मुझ से छुड़ा ले जाओ। तुम सब मिल कर युद्ध करो, मैं तुम से युद्ध किए बिना न जाऊंगा। युद्ध के पश्चात् कृष्णजी की भामिनी को विद्याधरों के नगर में ले जाऊंगा, पर मैं चोर नहीं हूं, स्वेच्छाचारी नहीं हूं, और व्यभिचारी भी नहीं हूं।

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