Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 82
________________ (७६) के बीच में जा खड़े हुए और श्रीकृष्ण से कहने लगे, हे माधक, यह आपने क्या विचारा जो अपने पुत्र से ही युद्ध ठान लिया, यह तो आप का प्यारा पुत्र प्रद्युम्न है, जिसे दैत्य हर कर ले गया था और जो राजा कालसंवर के यहां यौवन अवस्था को प्राप्त हुआ है । यह तो १६ वर्ष के पश्चात् श्राप से मिलने को आया है। फिर कुमार से कहने लगे, हे कामकुमार तुम भी अपने पिता के साथ क्या करने लगे । क्या यह तुम्हें उचित है ? कदापि नहीं, नारद मुनि के यह वचन सुन कर कृष्णजी युद्ध चेष्टा को छोड़ कर तुरंत मिलने के लिए आगे बढ़े । कुमार भी आगे बढ़ कर पूज्य पिता के चरणों में गिर पड़ा। पिता ने पुत्र को उठाकर गले से लगा लिया और संयोग सुख में मग्न होकर नेत्र बंद करलिए । उस समय उन दोनों को जो आनंद प्राप्त हुआ वह किसी प्रकार भी लेखनी द्वारा प्रगट नहीं हो सकता। थोड़ी देर के पश्चात् नारदजी ने शहर में चलने के लिए कहा । कृष्णजी सेना के नष्ट होने के कारण बड़े दुःखी होरहे थे। उन्होंने एक लम्बी सांस खींचकर उत्तर दिया, महाराज, मेरी सारी सेना नष्ट होगई, कोई भी नहीं बचा, केवल या तो मैं हूं या श्री नेमनाथ भगवान या यह मेरा पुत्र प्रद्युम्न कुमार । बतलाइए अब मैं नगर प्रवेश के समय क्या शोभा

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