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... (६८) भामा के पास पहुँची और रुक्मणी के बचनों और प्रतिज्ञा की बड़ी प्रशंसा करने लगीं । पर सत्यभामा ने उनके अंग कटे हुए देख कर उन से इस का कारण पूछा। वे अपनी नाक को साफ़ देख कर भौंचकित रह गई । अब तो सत्यभामा के क्रोध का पार न रहा । उसने तुरंत अपने मंत्रियों को आज्ञा दी कि इन नाई तथा दासियों को बल्देव जी के पास सभा में ले जाओ और उस दुष्टनी रुक्मणी ने जो बिडम्बना की है उसका उन्हें पूरा २ हाल कह सुनाओ । मंत्रियों को हुकुम मिलने की देर थी। उन्होंने तुरंत जाकर सारा हाल बल्देव जी से कहदिया । बल्देवजी यह सुनते ही क्रोध से लाल पीले होगए और यह कह कर कि इस पापिनी को अभी मज़ा चखाता हूं, अपने नौकरों को रुक्मणी का घर लूट लेने के लिए भेजा।
* चौबीसवां परिच्छेद *
घर सत्यभामा की स्त्रियों की बिडम्बना होने पर या रुक्मणी ने निश्चय कर लिया कि यह क्षुल्लक
१. ही मेरा पुत्र है और क्षुल्लक से कहने लगी कि निश्चय से तू ही मेरा पुत्र है, तुझे ही नारद जी लाए हैं । हे पुत्र ! अब क्यों माता को साक्षात दर्शन नहीं देता, विलम्ब