________________
वहां से निकल कर एक युवक ब्राह्मण का रूप धारण करके सत्यभामा के मंदिर में पहुंचा और भोजन की याचना की। दैवयोग से उस दिन शहर के अन्य ब्राह्मणों को भी सत्यभामा ने पुत्र के विवाह की खुशी में निमंत्रित कर रक्खा था । सत्यभामा ने उसकी याचना सुनकर अपने आदमियों को आज्ञा दी कि इसे भर पेट भोजन करा दो । महाराज भोजन करने लगे, सत्यभामा भी निकट बैठी थी । उसकी भूख का क्या पार रहा, न जाने कभी खाना मिला था या नहीं । पाचक परसते २ थक गए, पर ब्राह्मण देवता की क्षुधा न मिटी । जितना रसोई में अन्न था सबका सब समाप्त हो गया । घर में कुछ भी न रहा मगर वह "लाओ लाओ" ही करता रहा और सत्यभामा से कहने लगा कि तू बड़ी कृपण है, अरी दुष्टनी दूसरे लोग तुझ से कैसे संतुष्ट होंगे, जानपड़ता है कि तुझ जैसी कृपणा का अन्न मेरे उदर में ठेरेगा नहीं, ले अपना अन्न वापिस ले । यह कहकर सबका सब अन्न सबके सामने बमन कर दिया जिस से सारा घर भर गया, फिर जल पीकर घर से बाहर निकल गया।