Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 67
________________ तुझ से तो कुछ भी नहीं हो सकता। जरा से तेरा शरीर जर्जर हो रहा है । बुड्ढे ने कहा निस्संदेह मैं शक्ति हीन हूं पर हाँ इतना ज़रूर है कि यदि आप या आप के ये सुभट मुझे उठाकर घोड़े पर बिठादें, तो मैं अपना कुछ कौशल्य दिखला सकता हूं। वहां क्या देर थी, तुरंत आज्ञा हो गई । वीर सुभट बुढे को उठाकर घोड़े पर बिठलाने लगे, परंतु ज्यों ही वह घोड़े की पीठ के पास पहुँचा त्योंही उसने अपना शरीर ऐसा भारी कर लिया कि उन योद्धाओं से न संभल सका और उनको मर्दन करता हुआ उन्हीं के ऊपर गिर पड़ा। कई बार उद्योग किया, कुमार ने भी स्वयं ज़ोर लगाया परंतु हरबार उसने सब को ज़मीन पर गिरा दिया, अंत में भानुकुमार की छाती पर पैर रखकर घोड़े पर चढ़ गया और क्षण भर में उस घोड़े को मनोज्ञ गति से चलाकर, और अपनी अश्वशिक्षा की कुशलता दिखला कर आकाश में उड़ गया। भानुकुमार आदि समस्त राजपुत्र ऊपर को देखने लगे परंतु उनके देखते २ प्रद्युम्नकुमार घोड़े समेत अदृश्य हो गया । ... भानुकुमारको इसप्रकार पराजित व लज्जितकरके अपनी माता का बदला लेने वाला प्रद्युम्नकुमार आगे बढ़ा और सत्यभामा के बगीचे में पहुंचा। वहां अनेक मायामई घोड़े बना कर उनके द्वारा उस सुंदर बगीचे को क्षणभर में नष्ट भृष्ट

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