Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 65
________________ ( ६) कर लिया, जिसे देखकर वह मृगनयनी, अत्यंत प्रसन्न हुई। इसी प्रकार कुमार भी उसके रूप लावण्य को देखकर अंग में फूला न समाया। * बाईसवां परिच्छेद * FORCEOs सके अनंतर तीनों वहां से चलदिये और थोड़ीही इ देर में द्वारिका नगरी में पहुंचे । नारदजी ने वहां PRO का सारा वृत्तांत कुमार को सुनाया। उसे सुनते ही कुमार ने नारद जी से नगरी देखने की इच्छा प्रगट की और कहा कि यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं जाकर देख आऊ । नारदजीने उत्तर दिया, हे वत्स, तू बड़ा चपल है, तेरा नगरी में अकेला जाना ठीक नहीं, तू चपलता किए बिना न रहेगा, तिसपर यादव गण भी अवश्य उपद्रव करेंगे। कुमार ने उत्तर दिया, हे तात, मैं अब की बार कुछ भी चपलता न करूंगा, अभी क्षण भर में देख कर वापिस आजाऊंगा यह कह कर विमान थाम दिया और उन दोनों को वहीं छोड़ कर स्वयं द्वारिका की ओर चल दिया । ज्योंही उसने द्वारिका की पृथ्वी पर पैर रक्खा, सत्य भाषा के पुत्र भानुकुमार के दर्शन हुए जो नाना प्रकार की विभूतिसे संयुक्त घोड़े पर सवार था । प्रधुम्न ने अपनी विद्या

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