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कोई चिंता नहीं, मैं इन्हें अभी. मज़ा चखाए देता हूँ। कुमार ने तुरंत एक बड़ी शिला लाकर वापिका को उस से ढकदिया और उन राजपुत्रों में से केवल एक को बाहर निकाल कर शेष को उसी वापिका में औंधे मुँह लटका दिया और उस एक बचे हुए से कहा, तुम जाओ और पिता से सारा हाल जो कुछ मैंने किया है ज्यों का त्यों कह सुनायो ।
उसने वैसा ही किया, राजा को जाकर सारा हाल कह सुनाया । राजा सुनते ही क्रोध के मारे आग बबूला होगया। उसने तुरंत बड़ी भारी सेना के साथ नगर से बाहर निकल कर प्रद्युम्न पर चढ़ाई की। प्रद्युम्न ने भी कालसंवर की सेना को देखकर अपने देवों को स्मरण किया और विद्या के प्रभाव से बड़ी भारी सेना बनाली । दोनों सेनाओं में बड़ी देर तक घोर संग्राम हुआ, परंतु अंत में कुमार ने कालसंवर की सेना को तितर वितर करदी । गजों के समूह को गजों से और घोड़ों को घोड़ों से मारडाले । रथों से रथ तोड़डाले और योद्धाओं से योद्धाओं को धराशायी करादिया।
जब कालसंवर की सारी सेना नष्ट होगई तब वह व्याकुल होकर नाना प्रकार की चिंता करने लगा। इतने में उसे अपनी रानी की विद्याओं का स्मरण आगया। उसी समय रण का भार मंत्री को सौंपकर रानी के पास पहुँचा और उस