Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 57
________________ (५१) जानते हुए भी पूछा कि यह युद्ध क्यों हुआ। तब कुमार ने विनय पूर्वक निवेदन किया, महाराज मेरे पिताने माता के बचनों पर विश्वास करके मेरे मारने की तैयारी की थी। कृपा करके माता का दुश्चरित्र सुनिये, महात्मन् अब मैं पिता हीन होगया। अब मैं किसकी शरण लूं, कहांजाऊं, क्या करूं, ये दोनों निःसंदेह मेरे माता पिता हैं परंतु इन्होंने मेरे साथ घोर पाप किया है । नारद जी ने उत्तर दिया, बेटा! घबरा मत, तेरे सैकड़ों बन्धु हैं, तेरा परिवार कम नहीं। चल मेरे साथ, मैं तुझे तेरे असली माता पिता के पास लेजाऊंगा। तेरी माताकी एक सत्यभामा सौत है। उसके साथ उसका बड़ा विरोध है । तेरा वहां जाना ही उचित है । माता के दुश्चरित्र को क्या कहता है। स्त्री चरित्र कौन वर्णन कर सकता है । यह दुष्टनी कुपित हो कर अपने पिता, भ्राता, पुत्र, पति तथा गुरु को भी मार डालती है ।तू कुछ आश्चर्य मत कर, अब शीघ्र मेरे साथ चल, मैं तेरे लिवाने को ही आया हूं। इसपर कुमार ने पिता को छोड़ दिया और सारी सेना को चैतन्य कर दिया। सब योद्धा उठकर पकड़ो पकड़ो, मारो मारो, कहने लगे । तब नारद जी बोले, हे शूरवीर योद्धाओ ! इस युद्ध में तुम्हारा सबका पराक्रम देख लिया, अब तुम कुशलता से अपने नगर में जाओ, तुम्हें प्रद्युम्न कुमार ने जीव दान दिया है । सो

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