Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 62
________________ का रूप बनाकर सेना में प्रवेश किया। उसका मुँह सूखा सा था, दांत बड़े २ थे, शिर पर का जूट बेल से लिपटा हुआ था। उसके भयंकर, वीभत्स और रौद्र रूप को देख कर दुर्योधन की सेना के राजकुमार हंसने लगे और बोले, अरे पापी क्यों सामने खड़ा है, चल आगे बढ़, रास्ता छोड़। भील के रूप में कुमार ने कुपित होकर सेना से कहा, विदित हो कि मैं श्रीकृष्ण महाराज की आज्ञा से कर लेने के लिए यहां रहता हूं, सो मुझे कर देकर यहां से जाने पाओगे । कृष्ण का नाम सुनते ही सब बोल उठे, अच्छा तुझे जोचाहिए सो ले ले। भील-जो आप के पास सर्वोत्तम वस्तु हो सो दे दीजिए। ___ कौरव योद्धा-अर सर्वोत्तम वस्तु तो राजकुमारी उदधि कुमारी है, क्या तू उसे ही लेना चाहता है ? भील-हे शूरवीरो, उसे ही दे दो। निश्चय जानो कि मुझे संतुष्ट करने से श्रीकृष्ण भी संतुष्ट होंगे और तुम लोग भी निर्भय इस जंगल से निकल सकोगे। ___ कौरव योद्धा-अरे दुष्ट, पापी छोटा मुँह बड़ी बात, कहां तू नीच जाति का दुराचारी कुरूप भील, कहां वह सुंदरमुखी उदधिकुमारी, बस, हट ज़ियादा बक २ मत कर। किसी पर्वत

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