Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 46
________________ (४०) ऐसा पृथ्वीतल पर किसी दूसरे का नहीं है । प्रद्युम्नकुमार ने इस बात को सहर्ष स्वीकार किया, तब उस देवने इन दोनों का विधिपूर्वक पाणिग्रहण करा दिया। - पाणिग्रहण हो चुकने के पश्चात् उसी मनोहर वन में एक सकट नामका असुर प्रद्युम्नकुमार से आकर मिला और प्रणाम करके कामधेनु और एक सुंदर पुष्पों का रथ, ये दो दिव्य वस्तुएँ भेट की, प्रद्युम्नकुमार उसी पुष्प रथ पर अपनी प्राणप्यारी रती के साथ सवार होकर उस वन से तत्काल बाहर निकल आया । जब भाइयों ने सोलहों लाभों को प्राप्त करने वाले कुमार को देखा तब वे सबके सब मलीन मुख होगए। ___ सुंदर मदनकुमार रती के साथ रथ में आरूढ़ होकर आनंद से चला। उसके आगे २ वे सब विद्याधर भाई चले। पुण्य की यही महिमा है और पाप का यही फल है । सोलहवां परिच्छेद 8 geegee शती क साथ कामदेव का आगमन सुनकर नगर की 2 स्त्रियां जिस दशा में थीं उसी दशा में देखने के लिये दौड़ने लगी और ज़रासी देर में इतनी भीड़ जमा हो गई कि देखने की अभिलाषा से एक दूसर को धक्का देती थीं

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