Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 27
________________ (२१) तिलक करके युवराज पद दे दिया। माता ने मोद में लेकर आशीर्वाद दिया कि बेटा, तू चिरंजीव रह और अपने माता पिता को सुख दे। पश्चात् राजा रानी विमान में बैठकर अपने नगर में आए । राजा ने तत्काल मंत्रियों को बुलाकर कहा कि हमारी रानी के गृढ गर्भ था, जो मालूम नहीं था, इस कारण दैव वशात् आज वन में ही उसके पुत्र उत्पन्न हुआ है अतएव तुम रानी को प्रसूतिगृह में लेजाओ और समस्त आश्वयक क्रियाओं का प्रबंध करो । मंत्रियों ने तुरंत आज्ञा का पालन किया। अनंतर राजा ने हुक्म दिया कि याचकों को उनकी इच्छानुमार दान दो, कैदियों को कैदखाने से मुक्त करो, नगर को तोरणादि से सुसज्जित करो और महोत्सव मनाओ। ६ रोज तक नगर में बड़ा उत्सव हुआ । सातवें दिन नाम संस्कार के लिये सब कुटुम्बी जन एकत्रित हुए और सबने यह जान कर कि यह बालक "परान् दमयति" अर्थात् शत्रुओं का दमन करने वाला दीख पड़ता है उसका नाम 'प्रद्युम्न कुमार' रक्खा। ज्यों २ कुमार बढ़ता गया कुटुम्बी जनों तथा सर्व साधारण मनुष्यों को संतोष होता गया । सब कोई उसे प्रेम दृष्टि से देखने और हाथों हाथ खिलाने लगे।

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